Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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१३२1
वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला
१०४ वड्ढमाण कहा (जिणरत्तिविहाणकहा)
जिनरात्रिविधानकथा
कवि नरसेन आदिमंगल तव-सिरि भत्तारहो रिणज्जिय मारहो पणविवि अम्मइं
जिणवर हो। वय जिणरत्तिहे फलु अक्खमि णिम्मलु भव-सयसंचय
दुह-हरहो ॥१॥
हूंगरणिव रज्ज धरा समत्यु, वंदियण समप्पिय भूरि मत्थु । चउराय विज्ज पालण प्रतंदु, रिणम्मल-जस-वल्ली भवरणकंदु। कलि चक्क बट्टि पायड णिहाण, सिरिकित्तिसिंधु महिवइ पहाणु । तहु रज्जि वणी सु-महाणुभाउ, गोलाराडिय अण्णइ प्रपाउ । सेभो सेयाहिउ विदिय णामु, बुहयण कुवलय पालेय धामु ।
अन्तिमभाग:
इय जिण रत्ति विहाणु पयासिउ, जह जिण सासण गणहर भासिउ । जं हीणाहिउ काइमि वुत्तउ, तं बुहयण महु खमहु णिरुत्तउ । एहु सत्यु जो लिहइ लिहावइ, पढइ पढावइ कहइ कहावइ । जो णरु णारि एह मरिण भावइ,
पुण्णंह अहिउ पुण्ण फलु पावइ ॥ घत्ता
सिरि णरसेण हो सामिउ सिवपुर गामिउ वड्ढमाणु तित्थंकरु । जा मग्गिउ देइ करुण करेइ देउ सुबोहिउ गरु॥
मामेर भंडार १०५ सम्मत्तकउमदी (सम्यक्त्व कौमुदी)
कवि रइधू मादिभागः
अन्तिमभाग:
इय धण कण रयण गुणोह पुण्णु, वितमत्थ गिरि व जिण उर रवण्णु । बहु वि बुहा सिउ रणंतिम सवासु, गोवग्गिरि दुग्गु मही पयासु । तहि महि वय णामें कित्तिसिंघु, मरि-वर-गय-घड णिद्दलण सिंधु । तस्सेव रज्जि या पडु वरिणदु, गोलाराडय-कुल-कुमय-चंदु। चिरु हूबहू महरू णाम साहु, गुण मंदिरु सीया भज्ज गाहु, तहु णंदणु जिपय-पयम-भाण, विहडिय जणाण अद्धार ठाणु । लडकहिं दाण पालिय सधम्म, रूपा पिय मम तुहू रूप रम्म । तह जिस्सुमो तिस्सुमो सुक्खयारि, डूंगररिणव भंडाराहि यारि। सिरि सेऊसाह पसिद्ध साह, संजाउ जासु वर धम्म लाहु । सुहगा तहु पिय यम सुह पवित्ति, मलहारिणि णं जिणणाह कित्ति ।
x xx पुरण टेकणि जंप विय सियासु, एत्यु जि गोवग्गिरि सुहपयासु । तोमर-कुल-कमल-विपास-मित्त, दुब्वार वैरि संगर प्रतित्तु ।
हुय चारि वि णंदण जगं पाणंदण धम्मकज्ज पुरषरण वरू।

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