Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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१२६]
वीरसेवामन्दिर-प्रन्थमाला
१०० सिरिपाल चरिउ (श्रीपाल चरित्र)
कवि दामोदर
मादिभाग
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तइयउ मिदासु जगि सुहियरु, पाणंद हो जिणदासु सहोयरु । तासु महादे रमणि पउत्ती, साजिणपाय सरोरुह भत्ती। तासु पुत्तु मण सुक्ख मणोज्जउ, लहु भायरु माणिक्कु दुइज्जउ । सा सुरजणहु पुत्तु चउत्थउ, सेवदासु भुवणयलि पसत्थउ । गहिणिहलो सुभत्त जिणिदहो,
पाइं सुलोयण जयहु परिंदहु । पत्तातहो कुच्छि उ वण्णउ लक्खण पुण्णउ कुलसुहयरु पुत्तत्तउ । णं जिणवर सासणि दुरिय पणासणि सहइ परम
रयरगत्तउ ॥४० पढमउ घूधलि गुणसंपुण्णउ, णररूवे जिणधम्म उवण्णउ । जिणपूया विहि करण पुरंदरु, सील णिहाण सव्वजण सुदरु । क.म्मक्खय कारण मणि भाविउ, जेण जिरिंगद चरित्त कराविउ । तित्थयरत्त गोत्तु णिरु बीउ, माडणि रमणिहि पिउ जस लुद्धउ । णंदणु तहो दसरहु पिउभत्तउ, सिरिचंदु वि णंदउ गुणवंतउ । सा घूघलिहि धरणू लहु भायरु, गहिणि दीयाणेह कयायरु । पुणु विसण्हु बुच्चइ लहुयारउ, कुम सिरिहि परिणिहि मणहारउ । पंच........................
सो कुदकुद मुणिवरु जियक्खु, दिवि दिवि घुयमाणुण्णय विवक्खु । दीसइ पर्सतु जगि कयकयंतु सरतिय रंडत्तणु रय महंतु । मंथइ गोरसु भिण्हइ ण तक्कु, परित पइतवणु गच्छइणवक्कु । रयणायरु णउ पय पुण्ण देहु. गंभीरुण सरयन्भुवि सुमेहु । मंतोवहि बद्दण पुण्णिमिदु, पहचंदु भडारउ जगि अणिदु । तहो पट्टवर मंडल मियंकु, भन्वाण-पवोहणु विहुय संकु। सिरिपोमणंदि शंदिय समोहु, सुहचंदु तासु सीसुवि विमोहु । परवाइ मयंगय पंचमुहु, परिपालिय संजम णियम विहु । तह पट्ट सरोवर रायहंसु, जिणचंद भडारउ भुवणहंसु । वंदिवि गुरुयण वरणाणवंत, भत्तीइ पसण्णायर सुसंत ।
घता
(Incomplete meeter.)(१०२वां पत्र नहीं) प्रति-भट्टारकहर्षकीति भंडार, अजमेर
पत्र १०१
महो कव्व करणि गुरुयण, सयला करहुं सहाउ जि महुरसरा। भव्व कुमुय बोहण दिणयर णिण्णासिय कंदप्प भरा ॥२॥ वुच्छामि पापभंजण पवित्त, सिरिपाल गराहिव वर चरित्त।

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