Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह ८७ संतिणाह चरिउ (शांतिनाथ चरित्र)
रचना १५८७ कर्ता-महिन्दु या महाचन्द्र पादिभाग:जिणभय-तरु कंधर णुय भुविकंधर सुर वइ संतिहु पय
जुयलु। उत्तमु तह केरउ सुक्ख जणेरउ चरिउ कहमि पणविवि
अमलू ॥१॥
पर-छिद्दाण्णेसहि रह-यरेहिं । वेजीह वंक गइ सरल-रहिय, कि कीरइ कह बुह धम्म-सहिय । वर-बुहयण-कमल-दिरणेसरासु, णिय-कुल पह-मंडणु-सस-हरासु । प्रत्थी-मण-पूरिय-कंचणासु, जंपइ साहारणु मइ वरासु सल वलिय किमिहि उलु गलिय रंधु, मिल्लेवि देहु बहु पूइ गंधु । कक्कस-भासी पइ किहणु घिठ्ठ, उत्तम पएसि किं रमइ रिठ्ठ । णिक्कारणेण करि रोस भाउ, पर-दोस-गहण-पिसुरगहु-सहाउ । हण तिमिर-पसरु तेएण पूरु, को सियहु ण भावइ उयउ सूरू जइ तासो पोसिय खडय राह, कि णउ सावय लच्छी हराह । सुहिगण-छमाणव झेड पाउ, तहु कवणु गणइ प्रसहिय पयाउ । कोल्ही देवी पय-भत्तएण, ताजपिउ कव्व रसद्द एण ।
पावेवि देसु-कुलु-जम्म-रूउ. पाउवि-अरोय-बीरिय-सविणउ । वर-सवण-गहण-मइ-धारणासु, जणि मण्णिउ वण्णिउ बुहयणाम् । तह भत्तउ-भायरु-सुक्ख-हेउ, दोदा णामेणं मयर-केउ । लहुणिय घर पुत्तहु धरिय-भरु, कंचण वाणिज्जउ महुर सरु । तुहु सुत्थिउ दुत्थिउ उ कयावि, किंण कहहिं धम्म-कहा सया वि । कइ पुप्फयंत सिरि महपुराण, तहु मज्झि णिसुणउ मइ गुण-णिहाणु । चरियउ सिरि संतिहु तित्थणाहु, मइ णिविड-रइउ गुण-गण-अथाहु । गंभीर-बुद्धि दुल्लहु ण होइ, सो तुच्छ-बुद्धि सुलहउ ण जोइ । बुहयण हू जि एहु सहाउ हुति, सव्वहि हिययत्तण चितवंति। तहिं हुंतउ कड्डिबि वित्थर हि, पयडेसमि हउ मा भंति करहि । बोलिज्जइ कव्वं किय मएण, . महु तुच्छ बुद्धि खलयण भएण। ............जिह पित्त गहिय, विवरीय पयं पहि महुर-रहिय । जल-सप्पिणि इव दुज्जण हवंति, मुह दुद्ध थणहु रुहिरु वि प्रसंति । दोसायरेहिं णं णिसियरेहि,
पत्तापुण णिसुणहि इबहि वियलिय गवहि जेहु प्रासरसह
___णिलया। सो या जण-वल्लह पालिय वय दुल्लह पणविवि ते कइयण
तिलया ॥४॥ प्रकलंक सामि सिरि पाय पूय, इंदाइ महाकइ प्रहूय । सिरि गेमिचंद सिद्धतियाई, सिद्ध तसार मुणि ण विवि ताइ । चउमुहु-सुयंभु-सिरि पुप्फयंतु, सरसइ-णिवासु गुण-गण-महंतु । जसकित्ति मुणीसरु जस-णिहाणु, पंडिय रइधू कइ गुण प्रमाणु। गुण भद्दसूरि गुणभद्द ठाणु, सिरि सहणपाल बहु बुद्धि जाण।

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