Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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वोरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला
पढमी उधरण पुत्ती विचित्त, वीया चुहडही पियह रत्त। सं-भोयउ तुरिउ वि तोउ सालु, गजभच्छणामु गुणियण- रसालु । वे कामिणी भरहविपालधी य, दुइया साल्हाही अइविणीय । तहु अंगम्भउ सयतणु रमालु, बूढणही भज्ज हि अइ रमालु। तहु कुच्छिजाउ सुहवंत सूख, णं हंसपिल्लु णामेण सूबु । पुण भोयह पंचमु पुत्तु साहु, रणमलु णामें प्रच्चंत साहु । वे भजहि मोहिउ जासु मण, पढमा चूहडही भज्ज-रयण तहु जटमल्लु वि णामें विणीउ, तहु तीयवि रावणधीय गीउ । तहु पुत्त चयारि वि कामकासु,
पढमउ हिमारउ विबुह-विसेसु । चौपई
बीयउ मेइणिमल्लु पउत्तउ,
तीयउ वाइ विमल्लु वि उत्तउ । पद्धडी
चउथउ चउहत्यु वि दाण जुत्तु, सं रणमल्लहु बीयउ कलत्तु । पंथही तहु सुउ सूरदासु, पियमाइ भत्तु जिणवर वि दासु । एयाहं मज्झि साहारणेण,
काराविउ एहु गंथुतेण। चौपई
कम्मक्खय वि णिमित्तै सारउ, संतिणाह चरि वि गुणारउ । प्रायहु गंथ पभाणु विलिक्खिउ,
तेयालसइ गणि कइयण प्रक्खिउ । पद्धडी
विण्णहेण वि ऊधा पुत्तएण, भूदेवेण गुणगरणज्जुएण।
लिहियाउ चितेण वि सावहाणु,
इहु गंथ विबुहसर-जाणभाणु । चौपई
विक्कम रायहु ववगयकालइ, रिसि-वसुसर-भुवि-मंकालइ । कत्तिय-पढम-पक्खि पंचमिदिणि,
हुउ परिपुण्ण वि उग्गंतइ इणि । घता
जावहि महि-सायरु गयणु दिवायरु, मेरु-महीहरु चंदउ । जउण वि गंगाणई जिणवाणीसई, एहु सत्थु ता दउ॥
इति श्री शांतिनाथचरित्र समाप्तमिति । ८८ मियंकलेहाचरिउ (मृगांक-लेखा-चरित
कर्ता-पं भगवतीदास रचना-१७०० आदिभागः
पणविवि जिणवीरं गाण-गहीरं, तिहुवरण-वइ रिसिराइ जई। णिरुवम मविसत्थं सील पसत्थं, भगमि कहा ससिलेह सई ॥१॥ पुणु पभणमि सील-महप्पु लोइ, हरिशंक-किरण-सिय-कित्ति होइ ।
इय सिरि चंदलेहा-कहाए रंजिय-बुहचित्त-सहाए : रय सिरि महिंदसेण-सिस्स-पंडियभगवईदास-बिरइए सा लेहा-विवाह-भत्तार मिलाव वण्णणो णाम पढमो सं परिच्छेनो समत्तो।। अन्तिमभागः
कट्ठासंघ सु माहुर-गच्छए, पुक्खरगण-रिणम्मल-वय सच्छए । जिनवाणी पुव्वंग समाधरु, प्रवइण्णउ गावइ जणि गणहरु । धम्मज्झारण-साहरण पउ-सासमो, मिच्छ-कसाय- राइ रुझासमो। भविय-कमल-हिद-रणाण-दिवायरु, रिसि जसकित्ति गुरू तव-सायरु ।

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