Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 282
________________ १४ । घन्ता जीवाहं सुहंकरु धम्म इह जइ दय लक्खए इरि कहिउ । ताहि रुि जर कहा जस्तु महोउ उप्पह पहिउं ॥ X X X X अन्तिमभागः इह मज्झलोय जण पवर भोय, लाड पुर+खु खय वइरि पक्खु । वरण- उबवणेहि मंडिउ घरोहि, सु-वंस सेरिए कुतिय - बेरिण । साहार उच्च जहि सहल रिणच्च, सप्पुरिस जेम ते सहहि तेम । दारु-मय गेह कय-चित्त-रोह, रंधेहि चत्तणं जाणवत्त । तत्थट्टियाहं सावय जरणाहं, ****** | भवजलहि पारु होही अपार, जहि जग सदिट्ठि रिणवसहि सहिट्टि । घरि घरि जिरिंग केवल दिरिंगदु, पुज्जति भवु जहिं गलिय-गन्नु । पत्ताहं दारण विराएँ पहाण, घरि घरिवि जत्य दिज्जहि पसत्य । तहि प्रत्थि राउ प्ररि खय कयाउ, रिव गीइ-वंतु जयलच्छि-कंतु । सुलिताण साहि सुउपयड्डु अहि, 1 ईसाफ लामु रूवेण कामु, गामि मल्लुरि-चित्तु सहलु । तसु तराइ रज्जिम्मिल जसज्जि, वीर सेवामन्दिर - प्रन्थमाला घन्ता तद आदि सयरतु कमलालंकिय वत्थयलु । तिहुँ सुद्धिए श्रहणिसु जिरणवरहं भत्तिए पणमिय पय-जुयलु कमलसीहु गामेण पसिद्ध उ, जिरण समयारण भत्ति पडिबद्धउ । साधम्मिय जाण हद्धउ, रिय कुल भवरण सिहर मंडरणद्धउ । तहुतिय सील-रयरण वर-साला, रिम्मल-गुण- पसूण-ए माला । वीराय पूना रस-रत्ती, पत्त-तिभेयहं पर्याडयभक्त्ती । गामें रूपा कुल - सर हसिरिग, ससिलेहा दुरिय- त्रिसिरिग । ताहि गब्भि बे एांदण जाया, एणं चंदवक स तेय सहाया । एवं गुरिणयरण-तरु-पोसरण कंधर, विणि वि जिरणवर धम्म-धुरंधर | ताहं पढमु बुहयण - चिंतामणि, अवरुज्जिय समंतु भावइ मरिण । जे गिरियरहु जत्त पवित्त ( उ ), वियि यि परियण-संजुत्त ( उ ) । किय स-र-भउ महलु गिरुत्तउ, पेमराजु गामें से वृत्तउ । तरिय बधो गामें तहु भज्जा, पयडिय ताए रिणच्च सुहकज्जा । गोयसि बुहपण पसंसि । जोयणिपुराउ चिरु वसिवि प्राउ, जिरणसमय भत्तु पोसिय- सुवतु । चहा वर पहा . तहु सुउ उपतु गुरण-गरण- पसतु । कुलकमल भारत कलविबुह मार, दय धम्म- लीपु चाएँ पवीतु । पालिय सवग्गु दिढ़ समय लग्गु, पाल्हा सुसाहु-गामें प्रबाहु || मदर गामु जायउ तहु एदर, पयडिय परियण - जरण- प्राणंद | कमनसीहु साहुस्स तब्भव, वीय गं रूवेण मरणुब्भव । चंडिय गुण आरज्जिय दुज्जरण, विरणय-पसारे रंज्जिय सज्जरण । रिम्मल जस-भूसिय सुवणत्तउ, पंचपरमेट्ठी पाय णिरुत्तउ । अवजस दुह दुव्यरहिं चत्तउ, शय सगरि वडिय पत्तउ । बुहयरण कंचरण दाणें तोसिय पर - उवयार महीयलि पोसिय । हेमालय समु णिच्चल चित्तउ,

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