Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 296
________________ वोरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला - जय वड्डमाण सिव उरि पहाण, तइलोय-पयासण-विमलणाण । जय सयल-सुरासुर-णमिय-पाय, जय धम्म-पयासण वीयराय । जय सोल-भार-धुर धरण धवल, जय काम-कलंक-विमुक्क अमल । जय इंदिय-मय-गल-वहण बाह, जय सयल-जीव-प्रसरण-सरगाह । जय मोह-लोह-मच्छर-विरणास, जय दुट्ठ-धिट्ठ-कम्मट्ठणास । जय चउदह-मलवज्जिय-सरीर, जय पंच-महन्वय-धरण-धीर। जय जिरणवर केवलणाण-किरण, जय दंसरण-गाण-चरित्त-चरण । पत्ताजिणवरु वंदे विण गुरहु णवेविण भाव वाएसरि सरिवि । प्रणथमिउ पयासमि जण उन्भासभि रिणयमण सम भाव करिवि ॥२ अन्तिमभागः पुणु पाविट्ठह हमासक्कमि, धम्मकहा पयडे विरण सक्कमि । तेण समुच्चएण मइं जंपिउ, भव्ययणहं उवसंतहं जंपिउ । इउप्रणथमिउ जिणागमे उत्तर, एव्वहिं मई हरियंद रिणवुत्तउ। इहु प्रणथमिउ जु पढइ पढावह, सो गरु-गारि-सुरालउ पावइ । जो पुणु अविचलु मणि णिसुरणेसइ, तहो सुह विमल बुद्धि पयडेसइ । जो अक्खलिड प्रणथमिउ करेसइ, सो णिव्वाण णयरि पइसेसइ । मई पुणु भावें कव्वु चडावा, सुगम सुभरण बहुगुण अणुराया। पाविड वील्हा जंडू तरणएं जाएं, गुरु-भत्तिए सरसइहिं पसाएं। गाथा मयरवालवंसे उप्पण्णई मई हरियंदेण । भत्तिए जिणु पणवेवि पयडिउ पद्धडिया छंदेण ॥१॥ इय प्रणथमी कहा समत्ता। ७१ चूनडी (रास) कर्ता-मुनि विनयचन्द्र मादिभाग: विणएँ वंदिवि पंचगुरु, मोह-महा-तम-तोडण-दिणयर । वंदिवि वीरणाह गुण गणहर तिहुयरण सामिउ गुण पिलउ मोक्खह मग्गु पयासण जगगुर, गाह लिहावहि चूनडिय, मुद्धउ पभणइ पिउ जोडिवि कर ॥१॥ ध्र वर्क परगवउँ कोमल-कुवलय-यणी, लोया लोय-पयासण-वयणी। पसरिवि सारद-जोह जिम, जा अंधारउ सयलु विरणासइ । सा महु रिण-वसउ माणसहि, हंसवधू जिम देव सरासइ ॥२ माथुर संघहँ उदय मुरणीसरु, पण विवि बालइंदु गुरु गणहरु । जंपइ विणय मयंकु मुणि, मागमु दुग्गमु जइ विण जाणउँ। मालेज्जउ अवराहु महु, भवियहु इह चूनडिय वखाण ॥३ अन्तिमभाग: तिहमणि गिरिपुरु जगि विक्खायउ, सग्ग खडुणं धरयलि आयउ । तहिं रिणवसंतें मुणिवरेण, अजयणरिंद हो राय-विहारहिं । वेगें विरइय चूनडिया सोहहु, मुणिवर जे सुय धारहिं ॥३२॥ इय चूनडीय मुरिंगद-पयासी, संपुण्णा जिण पागम भासी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371