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२ -- द्वितीयोपशमसम्यक्त्व - ( सातवेंगुणस्थान में क्षायोपशमिक सम्प्रादृष्टि जीव श्रेणी चढने के सन्मुख अवस्था में अनंतानुबंधी चतुष्टय का विसंयोजन करके दर्शन नोहनीय की तीनों प्रकृतियों का उपशम करके जो सम्यक्ल प्राप्त करता है )
२- मिथ्यादृष्टि
१-~- अनादि मिथ्यादृष्टि - ( अभी तक सम्यग्दर्शन का अभाव ) २ -- सादि मिध्यादृष्टि - ( सम्यग्दर्शन होकर छूट गया हो )
२-श्रेणी
१ - उपशम (कमों के उपशम से ) २ - क्षायिक ( कर्मों के क्षय से )
२-श्री
१ - अंतरंग श्री ( अनंतचतुष्टय रूप ) -वाय श्री ( समवशरणादिक )
२-नियम
१–यम ( आजन्म का नियम ) २ -- नियम ( अमुक समय का नियम )
२- भोग-
१- भोग ( एक वार भोगने में आवे ) २ -- उपभोग ( बार बार भोगने में आवे )