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-समर्पण
श्रीमान् परमपूज्य पिता जी केकस्फमलों में
साधर--
समर्पित !
परमपूज्य ।
भाप की ही यह कृपा है ज्ञान कुछ मैंने लहा; उपकार कितना है किया मुझ से न जा सका कहा ज्ञान की बातें सभी में पाठकों को हां, रुचे- ये कीजिए आशीष ऐसा धर्म तरुवर सब सिंचें !!
माशालारी-पुत्र "सिसूसेम।
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- दो शब्द.
प्रिय बंधुओ व बहनो!
श्री जिनवाणी अगम है-वर्तमान में अनेकों शास्त्र हैं उनका स्वाध्याय करके जीव अपनी आत्मा का कल्याण करते हैं । उन्ही पूज्य शास्त्रों की ही कुछ अमूल्य वातें नवीन ढंग से इस पुस्तक में प्रगट कर पाठकों के सन्मुख उपस्थित की हैं आशा है कि यह पद्धति सबको पसंद पडेगी।
इस पुस्तक का दूसरा भाग छप रहा है वह शीघ्र ही पाठकों की सेवा में भेजा जावेगा ।
मेरे आग्रह से प्रस्तुत पुस्तक का संशोधन पंडित अक्षय कुमारजी शास्त्री सुपरिन्टेन्डेन्ट शेठ केवलदास धनजी दिगम्बर जैन बोर्डिग प्रांतीजने किया है। अतः अशुद्धियां संभव नहीं है । तथापि समयाभाव से काई अशुध्धि रह गई हों उसे पाठक गण क्षमा कर कृतार्थ करेंगे। "भूषण भवन"
सेवक:---- किरठल (मेरठ)) सा रत्न, सिद्धसेन जैन गोयलीय; निवासी.
प्र० अध्यापक दि. जैन आश्रम, IS.S.LRY.
जांबुडी. (हिम्मतनगर)
A. P. Rs.
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* नमः सिध्धेभ्यै! जैन धर्मामृत ( प्रथम भाग ) 98419
१- सिद्धशिला.
( सिद्धों के रहने की जगह - ४५ लाख योजन प्रमाण
१- अलोकाकाश.
( लोक्से बाहिर का आकाश )
१ - धर्म -
( जीव और पुद्गल को चलने में सहकारी ) १ - अधर्म
( जीव और पुद्गल को स्थिति में सहकारी )
१ - अंतराय बधकारण
( विघ्न करना )
१ - तिर्यंचायु पंधकारण( माया )
१ - एक अक्षरके मंत्र - अ ॐ ( पंचपरमेष्ठी वाचक )
ह्रीं ( २४ तीर्थंकर वाचक )
-अणु
( जिसका कोई टुकडा न हो सके । )
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२- श्रोता
१- शुभ श्रोता २ - अशुभ श्रोता
२- पंडित -
१ --- धर्मार्थी ( बादल समान ) २-मानार्थी ( तन समान )
२- निषिद्ध दोष-१ ईश्वर २-अनीश्वर
२ -मणि
१ - मणि ( छिद्रसहित ) २ - माणिका ( छिद्रविना )
२ - इष्ट वियोग
१ - आशा सहित
२ - आशा रहित
२--चक्षु दर्शन-
१ - शक्ति चक्षुदर्शन २ - व्यक्त चक्षुदर्शन
२ जीब
१ - - संसारी ( कर्म सहित जीत्र ) २ - मुक्त ( कर्म रहिन जीव )
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२-संसारी जीव
१-वस (वस नामा काके उदयसे द्वि, त्रि, चतुर् व पंचे.
न्द्रियों में जन्म लेनेवाले) २-स्थावर-( स्थावर नाम कर्म के उदय से पृथिवी आदि में
जन्म लेनेवाले) २-स्थावर
१-चादर. (पृथिवी आदिक से जो रुक जाय वा दूसरों को रोके)
२-सूक्ष्म. (जो पृथिवी आदिक से नस्वयं रुके और न दूसरों कोरोके) २-वनस्पति
१- प्रत्येक. ( एक शरीरका एकही स्वामी )
२-साधारण. (जिन जीवों का माहार, श्वास,आयु व काय एक हो) २-प्रत्येक बनस्पति
१-सप्रतिष्ठित प्रत्येक ( जिस प्रत्येक वनस्पति के आश्रय
भनेक साधारण वनस्पति शरीर हों) २-अप्रतिष्ठित प्रत्येक. (जिस प्रत्येक वनस्पति के आश्रय
कोई भी साधारण वनस्पति न हो) २.-निगोद
१-नित्यनिगोद-(जिसने निगोद के सिवाय दूसरी पर्याय न
तो पाई और न पावेगा) २-इतरनिगोद-(जो निगोद से निकलकर दूसरी पर्याय पाकर
फर निगोद में उत्पन्न हो.)
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२-भव्य
-भव्य (जिसे रलत्रय की प्राप्ति हो सके)
२-अभव्य (जिसे रत्नत्रय की प्राप्ति न हो) २-आहारक
५-आहारक
२-अनाहारक -सेनी. -सैनी (जिसके मन होय )
२-असैनी (जिसके मन न होय) २-परिग्रह--
१-अंतरंग ( कपायादि)
२-बहिरंग ( धनधान्यादि) २-गध
१-नुगंध (खुशबू)
२-दुर्गध ( वदवू) २-पुदगल
--अणु (सबसे छोटा पुद्गल-जिसका टुकडा न हो सके)
२-स्कंध (अनेक परमाणुओंका बंध) २-आकाश
१-लोकाकाश (जहां छहों द्रव्य हों) २-अलोकाकाश (जहां केवल आकाश द्रव्य हो)
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-काल
१ - निश्चय काल ( काल द्रव्य )
२--- - व्यवहार काल (काल द्रव्य की घडी, दिन, मास आदि वयों को. }
२- मोक्ष मार्ग
१ --- निश्रय ( सत्यार्थ स्वरूप )
२ - व्यवहार ( निश्चय का कारण )
२-बंध–
१- - द्रव्य ( कार्माण स्कंध पुद्गल द्रव्य में आत्मा के माथ संबंध होने की शक्ति )
२- भाव ( आत्मा के योग कषायरूप भावों को )
-आम्रव
-
१ - द्रव्य ( द्रव्य बंध का उपादान कारण अथवा भाव बंध का निमित्त कारण )
२ – भाव ( द्रव्य बंध का निमित्त कारण या भाव बंध का उपादान कारण )
२-आस्रव
१ - साम्परायिक ( कषाय सहित ) २ – ईर्यापथिक ( कषाय रहित )
२-संवर
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- द्रव्य ( द्रव्य कर्मों के २- भाव ( जो आत्मा के
में कारण )
२- निर्जरा
१- द्रव्य
२-भाव-
२- भाव निर्जरा
THE
- पूजा
१ - सविपाक ( नियत स्थिति को पुरी कर के कर्मों का झड जाना ) २- अविपाक ( तप धरण द्वारा कर्मों को उदय में लाकर कर्म व शक्ति रहित कर देना )
-नय---
आश्रव के रोकने में कारण ) भाव कर्मों के आस्रव के रोकने
- द्रव्य ( जलादी द्रव्य चढाकर पूजा करना ) २- भाव ( केवल भक्ति भावों से स्तुति करना )
१ - निश्चयनय ( वस्तु के किसी असली अंश को ग्रहण करने वाला ज्ञान )
-व्यवहारनय ( किसी निमित के वशं से एक पदार्थ को दुसरे पदार्थ रूप जानने वाला ज्ञान )
२-- निश्चयनय
१ - द्रव्यार्थिक ( जो द्रव्य अर्थात् सामान्य को ग्रहण करे )
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२-पर्यायार्थिय-(जो विशेष (गुण-पर्याय) को विषय करे २-गुण
१-सामान्य (जो सब द्रव्यों में व्यापे)
२-विशेष (जो सब द्रव्यों में न न्यापे) २-द्रव्य
१-जीव ( चेतना सहित )
२-अजीव ( चेतना रहित ) २-चेतना
१-दर्शन (जिस भे महासत्ता का प्रतिभास हो)
२-ज्ञान ( विशेष पदार्थ को विषय करने वाली) २-सत्ता
१-महासत्ता (समस्त पदार्थों के अस्तित्व गुण को प्रहण
करने वाली )
२-आवान्तरसत्ता (किसी विवक्षित पदार्थ की सत्ता ) २-प्रमाण
१-प्रत्यक्ष (जो पदार्थ को स्पष्ट जाने)
२-परोक्ष (दूसरे की सहायता से पदार्थ को स्पष्ट माने ) २-प्रत्यक्ष
-सांव्यवहारिक (इद्रिय तथा मन की सहायता से पदार्थ को एक देश स्पष्ट जाने)
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२ -- पारमार्थिक बिना किसी की सहायता के पदार्थ को स्पष्ट जाने) २- पारमार्थिक प्रत्यक्ष
१- विकल (रूपी पदार्थों को बना किसी की मदद के स्पष्ट जाने) २-सकल ( केवल ज्ञान )
२ - विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष
१ - अवधिज्ञान ( द्रव्य क्षेत्र काल भाव को मर्यादा लिये जा रुपी पदार्थ को स्पष्ट जाने )
२ - मन:पर्यय ( दूसरे के मनमे तिष्ठते हुए रूपी पदार्थ
----
को स्पष्ट जाने )
२- लक्षण
१ - - आत्मभूत
AS
( वस्तु के स्वरूप में मिला हो )
२ - अनात्मभूत ( वस्तु के स्वरुप में मिला न हो )
२- मिथ्यात्व -
१ – अगृहीत ( पहिले से लगा हुवा )
२ - गृहीत ( इस भव में कुगुरु वगैरे के संबंध से होने वाला )
२- परमात्मा
१ - सकल' ( भर्हत शरीर सहित चार वांतिया कर्म नष्ट करने वाला )
२ -- निकल ( सिद्ध-शरीर रहित- - अष्ट कर्म रहित )
२- सम्यग्दर्शन-
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१ - निश्चय ( अन्य द्रव्यों से भिन्न- आत्मा में श्रद्धान करना) २ -- व्यवहार ( जीवादिक सप्त तत्त्वों को यथार्थ श्रद्धान करना ) २-- सम्यग्दर्शन
१ - निसर्गज ( स्वभाव से होने वाला . ) २ -- अधिनमज ( परनिमित्त से होने वाला . )
२- सम्यग्ज्ञान
१ -- निधय (आत्म स्वरुप को जानना ) २ -- व्यवहार ( जीवादि तत्त्वों का ज्ञान )
२-- सम्यग्ज्ञान-
W
१ - निसर्गज ( स्वयमेव ) २-अधिगमज ( निमित से)
२ -- सम्यकुचारित्र
१ - निसर्गज ( स्वयमेव ) २ -- अधिगमज (निमित्त से)
२ – सम्यक्चामित्र -
९ - निश्चय (आत्मस्वरुप में लीन होना) २ - व्यवहार ( त्रतादिक का पालन )
२- सम्यक्चारित्र -
१ --- एक देश ( अणुव्रत रूप ) २ -सकल देश ( महात्रत रुप )
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२-परमाणु
६-निग्ध (चिकन)
२-रुक्ष ( रुखे ) २-औपशमिक भाव
५-उपगम सम्यक्त्त (सप्त प्रकृतियों के उपशम से )
२-उपशम चारित्र ( चारित्रमोहनीय के उपशम से) २-उपयोग
१-दर्शनोपयोग-~
२-ज्ञानोपयोग२-इन्द्री --
१-द्रव्यन्द्री-(निवृत्ति व उपकरण )
२-भावेन्द्री-( लब्धि व उपयोग) २-निवृत्ति
१-अंतरंग-( आत्मा के विशुद्धप्रदेशों की इंद्रियाकार रचना )
२-बाय-(इन्द्रियो के आकाररुप पुद्गल की रचना) २-उपकरण
५-अंतरंग-( नेत्र इन्द्रिय में कृष्ण-शुराम मंडल की तरह सव
इन्द्रियों में जो निवृत्ति का उपकारे करे ) २-याध-(नेत्रइन्द्रिय में पलक आदि की तरह जो निवृत्ति
का उपकार करे) ।
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२-ट्रन्येन्द्री
१-निवृत्ति ( रचना )
२-उपकरण ( रक्षक) २-भावेन्द्री
१-लब्धि-(क्षयोपशमजन्य विशुधि )
२-उपयोग-(एकाग्रता) २-कल्पवासी- "
१-कल्पोपन-(स्वगी में उत्पन्न होने वाले स्वर्गवासी )..
२-कल्पातीत-(स्वर्ग से ऊपर के देव) २-मनुष्य
१-आर्य
२-म्लेच्छ२-आर्य--
१-ऋधिप्राप्तार्य ( ऋधि वाले)
२-अनृधिप्राप्तार्य ( ऋधि रहित) २-म्लेच्छ
१-अन्तद्वीपज ( अन्तद्वीपों में उत्पन्न होनेवाले )
२-कर्मभूमिज ( कर्मभूमि में उत्पन्न होनेवाले ) २-उपशमसम्यक्त्व
१-प्रथमोपशमसम्यक्त्व-( अनादि मिथ्यादृष्टि के ५"और सादि
के ७ अंकृतियों के उपशम से जो हो)
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ર
२ -- द्वितीयोपशमसम्यक्त्व - ( सातवेंगुणस्थान में क्षायोपशमिक सम्प्रादृष्टि जीव श्रेणी चढने के सन्मुख अवस्था में अनंतानुबंधी चतुष्टय का विसंयोजन करके दर्शन नोहनीय की तीनों प्रकृतियों का उपशम करके जो सम्यक्ल प्राप्त करता है )
२- मिथ्यादृष्टि
१-~- अनादि मिथ्यादृष्टि - ( अभी तक सम्यग्दर्शन का अभाव ) २ -- सादि मिध्यादृष्टि - ( सम्यग्दर्शन होकर छूट गया हो )
२-श्रेणी
१ - उपशम (कमों के उपशम से ) २ - क्षायिक ( कर्मों के क्षय से )
२-श्री
१ - अंतरंग श्री ( अनंतचतुष्टय रूप ) -वाय श्री ( समवशरणादिक )
२-नियम
१–यम ( आजन्म का नियम ) २ -- नियम ( अमुक समय का नियम )
२- भोग-
१- भोग ( एक वार भोगने में आवे ) २ -- उपभोग ( बार बार भोगने में आवे )
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१-अणुप्रत ( १२ प्रकार)
२-महाव्रत ( सकलचारित्र) २–गोत्र
--उच्चगोत्र-( जिसम लोकमान्य उच्चकुल में पैदा हो)
२-नीचगोत्र-(जिससे लोक निंध कुलं में पैदा हो) २-आसन
१-सगासन
२- पयासन २-कषाय
१-कपाय (जो आत्मा को कषे)
२-नोकषाय (किंचित् कषाय ) २-वेदनीय
१-सातावेदनीय ( जिससे सुख मिले)
2-असातानेदनीय ( जिससे दुख मिले) २-उहिष्टत्यागप्रतिमा
१-ऐलक (एक लंगोटी मात्र राखे)
२-भुलक-(एक चादर रक्खे ) २-तप
-सुतप-( अच्छा)
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२ --- कुतप (खोटा )
२-सुख----
१ - सांसारिक ( इस लोक सम्बंधी )
२ -- पारमार्थिक ( आत्मिक - मोक्ष सुख )
२--कर्म-
१ -- सत्कर्म ( अच्छे कर्म ) '२ --- दुष्कर्म ( बुरे कर्म )
२- शौच
१ --- अंतरंग ( लाभ त्याग ) २ - बाह्य ( लौकिक शुध्धि )
२- लोक
१ - इहलोक
२ -- परलोक
२--प्राण
EGNANT
ક
१ --- भावप्राण ( ज्ञान दर्शन )
२- द्रव्यप्राण ( ५ इंद्रिय ३ वल १ आयु - श्वासोच्छ्वास )
२-भाव प्राण-
१ - ज्ञान ( जानना ) २--दर्शन (देखना)
२-मुनि
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१-द्रव्यलिंगी (आत्म ज्ञान रहित )
२-भावलिंगी (आत्मज्ञानी ) २-स्वभाव
१-सरल स्वभाव ( त्रियोग की एकता )
२-कुटिल स्वभाव (त्रियोग की विपरीतता ) २-कषाय
१---मन्द ( थोडी)
२-तीव्र ( अधिक ) २-मेाहनीय
१- दर्शन माहनीय ( दर्शन गुण को पाते)
२-बारित्र मोहनीय (चारित्र गुण को पाते) २-नाम ऋषभनाथ
१-ऋषभनाथ
२-आदिनाथ ( केशरिया भगवान ) २-नाम पुष्पदंत
१-पुष्पदंतनाथ
२-सुविधिनाथ २-मन
१-द्रव्य मन (शरीर रुप) २-भाव मन (आत्मा रुप)
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२-अंग
-अंग ( मुख्य अंग)
२-पंग ( अंग के भाग) २-उपसर्ग
-बेतन कृत ( जीव द्वारा )
२-अकेन कृत ( अजीव द्वारा ) २-गुण
१-मुगुण
२-दुर्गुण २-गुण
१- भूल गुण (मुख्य गुण)
२-उत्तर गुण ( गौण गुण) २-धर्म
१-मुनि धर्म
२-श्रावक धर्म -~-व्युत्सन
१ अन्तरंग
२-बाह्य २-श्रुति
१- अंन्वय (सामाविकादि १४ भेद । २अंगप्रविष्ट ( आचारांगादि १२ भेद }
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२- मन:पर्यय ज्ञान
१ - जुमति ( मन वन मन की बात जानना )
२-- विपुलमति (मरल व वक्र रूप दूसरे के मन की नात जानन्ग ) - निर्माण
२-अयग्रह-
१ --- स्थान निर्माण अंगोपांगो का योग्य स्थान में निर्माण होना ) २--- प्रमाण निर्माण ( आंगे गंगा की योग्य प्रमाण लिये रचना होना )
૨૭
२- अधिकरण---
नायकी गरलता रूप दूसरे के
१ - अर्थात्रमह | व्यक्त पदार्थ का अवग्रह )
२ -- जनाबग्रह ( अव्यक्त पदार्थ का अवग्रह )
9
- जीवाधिकरण.
२ --- अजीवाधिकरण.
२-- निवर्तना-
१ --- देहदुः प्रयुक्त निर्वर्तनाधिकरण ( शरीर से कुचेष्टा उत्पन्न करना )
२ -- उपकरण निर्वर्तनाधिकरण ( हिंसा के उपकरण बनाना ) २-- संयोग
१ - - उपकरण संयोजना ( शीत स्पर्श रूप पुस्तकादि को गर्म
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ફૂટ
पीछी से साफ करना )
२ -- भक्तपान स योजना ( पान तथा भोजन को दुसरे पान भोजन में मिलाना )
२-- स्कंध -
- लघु स्कंध
२ - महा स्कंध
२--स्थापना-
१ -- तदाकार ( आकार सहित )
- अतदाकार ( आकर रहित )
२. - पर्याय
१ -न्य जन पर्याय ( प्रदेशत्व गुण का विकार ) २-अर्थ पर्याय ( प्रदेशत्व गुण के सिवाय अन्य गुणो का विकार )
Browse
-- व्यंजन पर्याय --
•
समस्त
१ -- स्वभाष व्यंजन पर्याय ( बिना दूसरे निमित्त के' जो व्यंजन पर्याय हो )
२-- अर्थ पर्याय-
- विभाव व्यंजन पर्याय ( दूसरे निमित से जो व्यंजन पर्याय हो )
१--- स्वभाव अर्थ पर्याय ( दिना दूसरे निमित के होने वाली ).
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२-विभाव अर्थपर्याय ( पर निमित्त से जो अर्थपर्याय हो) २-क्रिया--
१-~-बारा किया ( पांच पाप करना)
२-आभ्यंतर किया (योग कपाय } २-कारण--
१.-समर्य कारण (प्रतिबंधक का अभाव होने पर सहकारी
समस्त सामग्री का सद्भाव )
२-असमर्थ कारण ( भिन्न २ प्रत्येक सामग्रो) २--सहकारी सामग्री
१-निमित्तकारण ( जो पदार्थ स्वयं कार्य रुप न परिणमे ) २-उपादान कारण (जो पदार्थ स्वर कार्य रुप परिणमे )
१-सुस्वर ( अच्छा )
२-दुस्वर ( बुरा) २-नाम कर्म
1-शुम नाम ( जिससे शरीर के अपयव सुंदर हो)
२-अशुम नाम ( जिससे शरीर के अवयव सुंदर न हो) २-पात
१--उपधात (अपना ही घात करने वाले मंग).
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२-परघात ( दूसरे के धान करने वाले अंग २-मति ज्ञान
-सांग्यववहारीक प्रत्यक्ष
२-परोक्ष २-गुण-- १-अनुजीवी ( भाव स्वरुप गुण, सम्यकवादि ) २-प्रतीजीपी ( वस्तु का अभाव स्वरुप धर्म २-~-पृष्टांत
१-अन्वय दृष्टांत ( जहां साधन की मौजूदगी में साध्य की
मौजूदगी दिखाइ जाय) २-न्यतिरेक दृष्टांत ( जहां साध्यको गैर मौजूदगी में साथ
नकी गैर मौजूदगी दिन्नाई जान ) २-अकिंचित्करहेत्वाभास
१-सिद्धसाधन (जिस हेतु का साध्य सिद्ध. हो । २-बाधितविषय ( जिस हेतु के साध्य में दुसरं प्रमापस
भाषा आवे) २-विशेष-- ...
1-सहभावी ( वन के पूरे हिस्से और उसकी सब अवस्थाओं
में रहने वाला विशेष) :-क्रमभावी (कम से होने वाले वद के विशेष
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२- नरकायुबंध कारण
१- बहु आरंभ परिग्रह
२
२- मनुष्यायु वध कारण
१- अल्पार भ
२- अल्प परिग्रह
२- अशुभनाम बंध कारण
--
१ - - योग वक्रता ( मन वचन काय की कुटिलना ) २ -- विसंवादन ( लडाई झगडा )
२- शुभनाम बंध कारण-
9
-योग सरलता
२- अविसंवादन
२- निवर्तना
२१
२-श्री
9 १ --- मूल गुण निर्वर्तना ( ५ शरीर, मन, बचन वासोच्छवास उसन्न करना )
२ --- उत्तरगुण निर्वर्तना (निष्कपट नकशा मूर्ति तैयार करना ) २- काय ---
१ --- स्थावर काय ( जिसके मात्र एक स्पर्शने द्रिय हो ) २ -- सकाय ( द्वि, त्रि. चतुर व पंच इहिय हो ।
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१ -चंतन स्त्री ( जीव सहित )
२ -- अतन स्त्री ( चित्रपटादि अजीब श्री ) २- कर्म
२ - द्रव्य जीव
१ -- घातिया ( जो आत्मा के गुणों का घात करें ) २-- अघातिया ( जो आत्मा के गुणों का घात न करे }
-आगम द्रव्य जीव
२- ना आगम द्रव्य जीव
/..
१
--
२- माय जीव
१-- आगम भाव जीव
९-नो आगम भाव जीव
२-गति
૩
१ - अविग्रहगति ( ऋजु सरल गति ) २ - विग्रहगति ( माडे वाली गति )
२- लेश्या
१ - शुभ ( पीत पद्म शुक्ल )
२ - अशुभ ( कृष्ण नील कापत )
२-अक्षर के मंत्र१-ॐ हीँ ॐ ह्रीँ,
२ -- सिद्ध
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२- दु.ख -
२
- अवधिज्ञान
१ - शारीरिक ( शरीर संबधि ) ० - मानसिक ( मन संबंधि )
१ -- भवप्रत्यय ( जन्म से )
२ - गुणप्रत्यय ( तपादिक से )
-―――
રક્
--
काल
१ - उत्सर्पिणी ( जिसमें आयु आदि बढता जाय ) २ - अवसर्पिणी ( जिसमें आयु वलादि घटता जाय )
-कुशील
२- संयम
१ - प्रतिसेवना कुशील ( जिस मुनि को शरीर उपकरणादि से विरक्तता न होय मूल व उत्तर गुणों की पूर्णता होय) १- कषाय कुशील ( कदाचित उत्तर गुणों में दोष आवे ) जिन मुनियों के संज्वलन कषाय हो )
१ – इन्द्री संयम - ( ५ इन्द्रियों व मन को वश में करना )
--
२ - प्राणि- संयम ( ६ काय के जीवों की रक्षा करना ।
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________________
३- आत्मा
१ - बहिरात्मा - ( निध्यादृष्टि जीव-जंगर को समान जानने वाला)
अंतरात्मा - ( सम्यग्दृष्टि )
३- परमात्मा - ( अरहंत - सिद्ध )
३- अंतरात्मा
१ --- उत्तम ( मुनि )
२ - मध्यम ( श्रावक )
३ - जघन्य ( व्रतरहित सम्यग्दृष्टि )
:-सुपात्र
१ - उत्तन
मध्यन
--जघन्य
३-- पात्र -
૨૦
·
१ - सुपात्र ( मुनि आर्यका श्रावक श्राविका ! २ -- कुपात्र - ( अन्यसती मिध्यादृष्टि धरमात्मा ) ३---अपात्र -- ( सम्यक्त्व और व्रत रहित )
३- रत्न
--
१ - सम्यग्दर्शन ( सच्चा श्रध्धान ) २--- सम्यग्ज्ञान ( सच्चा ज्ञान ) ३ - सम्यग् चारित्र ( सच्चाचारित्र )
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३- लोक
१
ऊर्द्ध वूलोक (स्वर्गादि ) २ - मध्यलोक ( जम्बूदिपादि ) ३ -- पाताललोक ( नरकादि )
३-काल
१ -- भूतकाल ( जो हो चूका ) २-- वर्तमानकाल ( जो चल रहा है ) ३- भविष्यकाल ( जो आगे होगा )
३-काल
१ -प्रातः
२- मध्यान्ह ३ - सायं
३- वेद
१ – पुवेद २-स्त्रीवेद
३ - नपुंसक वेद
૧
३-विकलत्रय -
१ द्वीन्द्रिय
२ - त्रीन्द्रिय ३ - चतुरिन्द्रिय
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१-द्रव्यकर्म (ज्ञानावरणादि) २-भावकम (रागद्वेषादि)
३-नोकर्म (औदारिकादि) ३-गोकर्म
-औदारिक २- वैक्रियक
३-आहारक ३-घायु
१-धनोदधिवातवलय २-धनवातवलय ३-तनुवातवलय
१-अधःकरण २-अपूर्वकरण
३-अनिवृत्तिकरण ३-गायक
१-देशनायक २-घर नायक ३-मन नायक
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________________
३- जाप्य
१ - वाचिक ( बोलकर )
२ - उपांशु -- ( विना बोले ओठों को चलाकर ) ३ - मानस ( मन में विचार करना )
३- मूढता
१ - देव मूढता ( रागी द्वपो देवों को पूजना ) २ --- लोक मूढता ( गंगा में स्नान कर धर्म मानना आदि ) ३ --- गुरु मूढ़ता ( मिथ्यादृष्टि गुरुषों को मानना )
३- गुणवत
१७
१ - दिग्वत (दशों दिशाओं का आनेजाने का जन्मपर्यंत नियम) २ -- देशव्रत ( अमुक समय तक आने जाने की मर्यादा ) ३ - अनर्थ द डव्रत ( बिना प्रयोजन काय में प्रवृत्ति न करना )
३- शल्य-
१ - माया ( मायाचार )
२- मिथ्यात्व ( अश्रध्धान )
३ --- निदान ( संसार सुख की आशा )
३--उपयोग---
१ - अशुभोपयोग
२ -- शुभोपयोग ३ - शुभ्धोपयोगः---
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-मानसिक ( मनसे होने वाला) -पात्रिक (बचन से होने वाला)
-भाविक ( काय से होने वाला) ३-निसर्ग
-मनोनिसर्ग (दुष्ट प्रबर से मनप्रवृति) २-बानिसर्ग (दुष्ट प्रकार से बचन प्रवृति) ३-कायनिसर्ग (दुष्ट प्रकार से कार प्रवृति)
१- (मनुष्य पशु आदि का) २-उपपाद (देव नारकी का)
३-सम्मूईन (घास आदि क) ३-गर्मजन्म
१-वण्युन (जेर से उसन्न होने वाले) २-मंडन (अंडे से उलन होने वाले)
३-पोतज (उत्पन्न होते ही भागने वाले) ३-गुति
-मनोगुप्ति ( मन वश करना) २-वचनराप्ति (वन वश करना) ३-अयाप्ति (अब वश में करना)
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३-योग
२ वचन
३-पदार्थ
१--हेच (छोडने लायक) २–झेच (जानने लायक)
३-उपादेव (प्रण करने लायक) ३-पल्य
१-व्यवहार पल्य (४५ अंक प्रमाण.रोनों को १० वर्ष
वाद एक २ चढने से जितना समय लगे) २-उद्धार पत्य ( व्यवहार फ्ल्य से अवंल्यात गुना )
३-अधा पत्य ( उदार पत्य से असंल्यात गुना.) ३-अवस्था
९-बाल्यावस्था २-युवावस्था
-वृद्धावस्या ३-अणुवृती श्रावक
१-पक्षिक २-साधक
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________________
३-अवधिज्ञान
१--देशावधि २-सर्वावधि
३-परमावधि ३-पारिणामिकभाव
१-जीवन २-भव्यत्व
३-अभव्यत्व १-द्रव्य लक्षण'... . १-उत्पाद (उत्पन्न होना) ।
२व्यय ( नाश होना)''
धोन्य ( निश्चत रुप में रहना
:
..
:
३-मकार-.
~मद्य ( शराव ) २-मांस ( गोस्त)
३-मधु ( शहद ) ३-समरंभादि
१-समारंभ ( किसी कार्य का मन में विचार करना) २-समारंभ ( कार्य के लिए सामग्री इक्ठी' करना ) ३-आरंभ ( कार्य शुरु करना ) .... .
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1
३- कृतादि
- ब्रह्मचारी
३
१ - कृत ( स्वयं करना ) २ - कारित ( दुसरे से कराना ) ३ – अनुमोदना ( सलाह देना )
१ - स्त्री त्यागी
२ - क्रिया ब्रह्मचारी
३-कुल ब्रह्मचारी
३१
१ - जलचर (जल में रहने वाले ) २ थलचर ( पृथ्वी पर चलने वाले ) ३- नभचर (आकाश में उडने वाले )
३- भावक - चिन्ह
9- -छानकर पानी पीना
२- रात्री भोजन त्याग ३ --- दरशन करके खाना
३- तोर्थ कर ३ पद धारक१- शांतिनाथ
२ - कुन्धुनाथ ३ -- सरःनाथ
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३-चौवीसी
२-वर्तमान
३-भविष्यत ३-अंगोपांग
१-औदारिक २-वैक्रियक
३-आहारक ३-मंगलाचरण
१-नमस्कारात्मक , २-भाशीर्वादात्मक
३-वस्तुनिर्देशात्मक : ३-खी
१-मनुष्यनी (चेतन ) २-तियं चनी
३-स्त्री
१-काष्ठ( अचेतन ).
२-चित्राम ३-धातु
.
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________________
३-छत्र
( भगवान के ऊपर रहते हैं) ३-वर्ग
१-धर्म २-अर्थ -काम ३-लक्षणाभास। १.-अव्याप्ति ( लक्ष्य के एक देश में लक्षण का रहना )
२-अतिव्याप्ति ( लक्ष्य और अलक्ष्य में लक्षण का रहना )
३-असभव ( लक्ष्य में लक्षण की असंभवता ) ३-हेतु
१-केवलान्वयी ( जिस हेतु में सिर्फ अन्वय दृष्टांत हो ) २–केवल व्यतिरेकी ( केवल व्यतिरेकी दृष्टांत हो ) ३-अन्वय व्यतिरेकी ( जिसमें अन्वयी दृष्टांत और व्यतिरेकी
दृष्टांत दोनों हों ) ३-प्रमाणाभास
१-संशय ( विरुद्ध अनेक काटि स्पर्श करने वाला ज्ञान) २-विपर्यय (विपरीत एक काटी का निश्चय करने वाला ज्ञान)
३-अनध्यवसाय (यह कया है “ऐसा प्रतिभास" ) ३-द्रव्यार्षिक नय
१-नैगम ( पदार्थ के संकल्प को ग्रहण करने वाला ज्ञान ) २-संग्रह ( अपनी जाति का विरोध नहि करके अनेक
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विषयों का एकपने ग्रहण करने वाला ) ?-व्यवहार ( संग्रहनय से ग्रहण किये हुए पदार्थो का विधि
पूर्वक भंद करे ) ३.-व्यवहार नय ( उपनय )
१-मद्भुत व्यवहारनय ( एक अखद द्रव्य को भेद रुप
विषय करने वाला ज्ञान ) २-असद्भुत व्यवहारनय (मिले हुये भित्र पदायों के
अभेद रुप ग्रहण करने वाला ) :-उपचरित व्यवहारनय ( अत्यन्त भिन्न पदाधों को अभेद
रुप ग्रहण करने वाला) ३-अविरति
१-अनंतानु बधि नपायोदय जनित 2-अप्रत्याख्याना वरण कपायोदय जनित
-प्रत्याख्याना वरण कषायोदय जनित ३-म्यान एक २ लाख योजनके१.-जम्बूदीप
. २-सातेवं नरक का पहला इन्दक पटल ३- सर्वार्थ सिद्ध विमान
--निकट मन्च २-दूर भव्य
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________________
-दुरान्दर भव्य ३~-भाव
५-अशुभ ( कपायादि ) २-शुभ ( धार्मिकभाव )
३-शुध्ध ( आत्मिकभाव ) ३-चेतना
१--कर्म चंतना २-कर्म फल चतना
३-जान चेतना ३-अक्षर के मंत्र
ॐ नमः
ह्रीं नमः ३-करण
१-अधःकरण ( जिस करण में उपरितन समयवती नया
अधस्तन समयवर्ती जीवों के परिणाम सद्रश नथा
विसदश हों ) २-अपूर्वकरण ( जिसमें उत्तरोत्तर अपूर्व ही अपूर्व परिणाम
होते जावें) ३-अनिवृति करण ( जिस में भिन्न समय वर्ती जीवां
के परिणाम विसदश ही हों और एक समयवर्ती जीवां के सदश ही हों )
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३-योग स्थान
१-उत्पादयोग स्थान २-एकांत वृध्धि योग स्थान ( गामहसार जीवकाड में
देखो ३- परणाम योग स्थान ३-धर्म अरुचि के कारण
५- अज्ञानता २-पाय
३-पापादय ३–पर्याप्ति
१-पर्याप्ति २-अपर्याप्ति ( निर्वत्य पर्याप्ति )
-लब्धि अपर्याप्ति ३-आंगुल
१-~-नाम उच्छेद आंगुल २-आत्म, आंगुल
३-प्रमाण आंगुल ३- हार (आभूषण)
१-एकावली जिष्टी हार २~-रत्नावली जिप्टी हार
2-अपवृतिकहार ३-अक्षर
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________________
१- निवृति अक्षर २-लन्धि अक्षर
३-स्थापना अक्षर ३-अग्नि
१-शाकाग्नि २-आत अग्नि
३-काष्ठ अग्नि ३- अतिशय
१-वचन अतिशय .२-आत्म अतिशय ३-भाग अतिशय
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2-दान--
१-आहार दान २~-औषध दान ३-ज्ञान दान
४-अभय दान ४-चार राजाओं को विद्या
१-अनीप की विद्या २-नई विद्या ३-वार्ता विद्या
४-दंडनी विश 2-गनि
१-देव गति २-मनुष्य गति ३-तियेच गति
४-नरक गति --काषाय---
१-क्रोध ( गुस्सा करना ) २-मान ( घमइ करना) ३-माया (छलकपट)
४-लेभ ( परीमह की इच्छा लालच ) --अनुयोग---
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________________
१-प्रथमानुयोग ( पुराण चरित्र जिसमें हो )
२-वरणानुयोग ( लोक-गति संवधि वर्णन ) .. ३-चरणानुयोग ( नुनि श्रावक चारित्र वर्णन )
४-द्रव्यानुयोग ( आत्ला द्रव्य संबंधी वर्णन )
1-द्वि इद्रिय २-त्रि इन्द्रिय ३-चतुर इन्द्रिय
४-पंचे इन्द्रिय ४-मंगल
१-अरहंत मंगल २-सिद्ध मंगल ३-साधू मंगल
४-केवलि प्रणीत धर्म ४-ध्यान
१-आत । २-रौद्र । अशुभ
३.धर्म
। शुभ
४-जुक्ल । --आतध्यान--
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-ष्ट विचागन (प्रित्र पत्तु के विवाग होने पर प्राप्ति
पर विचार करना ) २-अनिष्ट संचागज ( अप्रिय वस्तु का संचाग हान पर
दूर करने का चितवन) :-वेदना ( रोग जनित पीडा का चितवन )
४-निदान ( आगानी विषय भोगों की इच्छा ) ४--कोद्रध्यान--
६-हिसानद ( हिंसा करके आनंद मानना ) :-अमृतानंद ( झट बोलने में आनद नानना) -स्तेयानंद (चारी ने आनद मानना) -परिमहानंद (विपच सामग्री की रक्षा करने में आनंद
नानना ) ४-धमध्यान--
-आज्ञाविच्च (आगन की आज्ञानुसार पदायों के स्वरुप
सावित्रारना) -अपाचविचच ( सनान के प्रचार का चिंतन करना ) . :--विपाकविचय ( कर्न फल का चितवन करना )
-संस्थानविश्च (लेक के सरुप चिन्तवन) ४--तंन्धान रिचय
१-पिंटस्थ २दन्य
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________________
finiw win
४-रूपातीत ४-शुक्लध्यान
1-पृधवत्ववितर्कविनार २-एकत्यवितर्क ३.-सूक्ष्मनियाप्रतिपाति
४-व्युपरनझयानिवर्ति १-संघ
-मुनि २-आर्थिका ३-श्रावक
४-श्राविका ४-देव
5-भवनवासी २-व्यं तर ३-ज्योतिषी
४-कल्पवाती ४-देव... -
१-देवाधिदेव ( अरहंत-सिद्ध) २-देव (भवनवासी वगेरे )
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________________
કર
2-कुदेव (मिथ्यातो देव )
४-अदेव (तुलसी, पीपलादि) ४-दर्शन
१-चक्षुःदर्शन ( आंख से सता मात्र खना) २-अचक्षुदर्शन ( आंख सिवाय अन्य इन्द्रियों से किसी वस्तु
की सत्ता मात्र का जानन ) ३-अवधिदर्शन (अवधिद्वारा रूपी पदाथों की सत्ता मात्र
का जानना ) ४-केवलदर्शन (कवली को समस्त पदार्थों की संता
___ मात्र का भान होना) ४-संज्ञा
१-आहार (साना) २-निद्रा (सोना) ३-परिग्रह (लोभ)
४-मैथुन (विषय-इच्छा) ४-पुरुषार्थ
१-धर्म २-अर्थ 3-काम
४--मोक्ष ४-निक्षेप
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१-नाम-व्यवहार के लिये नाम रखना. २-स्थापना-किसी एक वस्तु को दूसरी वस्तु स्थापन करना । -द्रव्य-भूत वा भविष्यत के गुणरूप कहना ।
मार-वर्तमान समय में जैसा हो वैसा कहना । --भावना
६-मैत्री-(सब जीवों से मित्रता रखना) २-प्रमोद ( गुणाधि कों में प्रसन्नता का भाव )
-कारुण्य ( दुःखी जीवों पर करना-वृद्धि रखना )
४-माध्यस्थ ( पापी अविनयी जीवों में माध्यस्थ भाव रखना) -~चिकथा
१- स्त्री कथा २- देश कथा ३-भोजन कथा
४-राज कथा -भावना (गृहस्थ ) धर्म
१-दान २-शील
४-भावना ४-वर्ण
१-प्राह्मण
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________________
२-क्षत्री
मेरु पर्वत संबंधी
४-बन
१-मसाल ) २-सौमनस ३ नंदनवन ।
४-पांडक ) ४-अनंत चतुष्टय
१- अनंत दर्शन २-अनंत ज्ञान ३-अनंत सुख
४-अनंत वीर्य ४-आयु---
१-नरकायु २-देवायु ३-मनुष्याड
४-तिर्यंचायु ४-माराधना
१-दर्शन २-ज्ञान ३-चारित्र
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१-ब्रह्मचर्याश्रम २--गृहस्थाश्रम ३--वानप्रस्थाश्रम
४-उदासीनाश्रम ४-हिंसा
१-संकल्पी ( जान बूझ कर ) २-विरोधी ( अपना वचाव करने में ) ३-आर भी ( आरंभ करने में)
४-उद्योगी ( व्यापारादि में) ४-सम्यक्त्वचिन्ह
१-प्रशम ( समता) २-सवेग ( वैराग्य ) ३-अनुकंपा ( दया ) ४-आस्तिक्य ( श्रद्धा )
१-द्रव्यमान, २- क्षेत्रमान ३--कालमान ४--भावमान
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१--अर्जिका के गुण---
-लज्जा
- विनय
३-नैराध्य
४-- शुभाचार
२- दण्ड
१ हा
:-हा, मा
३. -हा, मा धिक् ४-१६ व धनादि
--दान
દ્
१०] पर्वदान ( ससार त्याग }
}
२ - पात्रदान (४ संघ के ३-~-समदान ( साधर्मी के ४ -- दयादान ( दुखी जीवों को
४-बंध-
१ - प्रकृतिबंध ( कर्म जिस स्वभाव का लिए हुए है वह ) २- स्थितिबंध ( जितने समय तक वह कर्म आत्माके साथ रहे ! ३- अनुभागवध ( तीव्र--भंद जैसा उस कर्म का फल है वह ) - प्रदेशवरंध ( कर्मो का आत्मा के प्रदेशों से एक क्षेत्रावगाह रूप --- संबंध होना )
४-----
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५-दोष
१-अतिकम ( मन में विकार ) २-व्यतिकम ( व्रत-उल्लंघन ) ३-अनीचार ( विषयों में प्रवृति ) ४-अनाचार ( विषयों में आसक्ति)
१-वर्तना ( जो दूसरे का बर्तावे) २-परिणाम (द्रव्य की ऐसी पर्याय जो एक धर्म की निवृत्ति
रूप और दूसरे धर्म की जननरूप होय३-क्रिया (हलनचलनादि रूप)
४-परवापरत्व ( छोटा वडा होना) ४-शिक्षाप्रत-
१-सामायिक (सर्व जीवों में समताभाव रखना ) २-प्रोषधोपवास (अष्टमी चतुर्दशी को प्रोषध पूर्वक
उपवास करना) ३-भोगोपभोगपरिमाण (मोग-उपभोग का नियम करना)
४-अतिथि संविभाग ( सुपात्र को दान देकर पीछे स्वाना) . ४-पर्व-.
२-अष्ठमी
एक मासके
२-चतुर्दशी
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1-स्म'ध २-स्कंध देश ३-स्कंघ प्रदेश
४-अणु --दान में विशेसता--
१-विधि २-द्रव्य
४-दाता *--विनय
१-दर्शन दिनव २-ज्ञान विनय ३-नारित्र विनय
४-उपचार दिनय 2 -पदार्थों को जानने के उपाय--
१-निक्षेप २-प्रमाण ३-नय
४-लक्षण -प्रकृति
१-जीवत्रिपाठी ( जिन ना कल जांच में हो)
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२~-पुद्गलविपाकी-(जिस का फल शरीर में हो) ३-भवविपाकी-(जिस के फल से जीव संसार में रुके) ४-क्षेत्रविपाकी-(जिस के फल से विग्रह गति में जीवका
आकार पहला सा बना रहे) ४ -देवगति के कारण
१-सरागसंयम २---संयमासंयम ३-अकामनिर्जरा
४-बाल तप १ -आनुपूर्वी
१-नरकगत्यानपू. २--तिर्यपत्यानुवी ३-मनुष्यन्त्यानुपूर्वी
४-देवगत्यानुपूर्वी ४-नीच गोत्र कारण
१-3निप्रशंसा २-पर निंदा ३-इसरो के सद् गुणों को ढकना
४-~-इसरों के दुगुणों को कहना 3-हेत्वाभास
१-असिद्ध (जिज हेतु के अभाव का निश्च हो)
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२ -- विरुद्ध ( साध्य से विरुद्ध पदार्थ के साथ जिसकी व्याप्ति हो) ३ - अनेकांतिक. ( जो हेतु पक्ष, सपक्ष, विपक्ष तीनों में व्यापे ) ४ - अकिंचित्कर (जो हेतु कुछ भी कार्य करने में समर्थ न हो) ४ - पर्यायार्थि कनय
--
१ ---- ऋजुसूत्र ( भूत भविष्यत की अपेक्षा न करके वर्तमान पर्याय मात्र को ग्रहण करे )
२ --- शब्दनय ( लिंग, कारक, वचनादि के भेद से पदार्थ को भेदरूप ग्रहण करे )
३ – समभिरूढ ( लिंगादिक का भेद न शब्द के भेद से पदार्थ को भेदरूप ग्रहण करे ) ४ एवंभूत ( जिस शब्द का जिस क्रियारूप क्रियारूप परिणमे पदार्थ को ग्रहण करे )
५-अभाव
·
होने पर भी पर्याय
अर्थ है उसी
१ -- प्रागभाव ( वर्तमान पर्याय का पूर्व पर्याय में अभाव ) २ - प्रध्वसाभाव ( आगामी पर्याय में वर्तमान का अभाव )
३ - अन्योन्याभाव ( पुद्गल द्रव्य की एक वर्तमान पर्याय में दूसरे पुद्गल की वर्तमान पर्याय का अभाव )
४- अत्यं ताभाव ( एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य का अभाव ) ४--चारित्र
१--- स्वरुपाचरण ( शुद्धात्मानुभव से अविनाभावी चरित्र विशेष ) २ - देशचारित्र ( श्रावक के व्रत )
३ - सकल चारित्र ( मुनियों के व्रत ).
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४-यथाख्यात ( कपायों के सर्वथा अभाव से प्रादुर्भूत आग
की शुधि विशेष) ४-आस्रव
१-द्रव्यबंध का निमित्त कारण २-द्रव्यवंध का पादान कारण ३-भावबंध का निमित्त कारण
४-भावबंध का उपादान कारण ४--विग्रहगति
१.-ऋजुगति (एक समय प्रमाण ) २-पाणिमुक्ता (दो समयवाली) ३-लांगलिका (तीन समयवाली)
४-गात्रिका (चार समय वाली) अशौच
१-ऋतुसंवधी (मासिक धर्म-रजस्वला) २- प्रसूति , ३-मृत्यु ।
४-अस्पृश्य , ४-विकृति
१-मद्य २-मांस
.
.
४-मरखन
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४-आहार
१-खाद्य-खाने योग्य (दाल, भात, रोटी, ल आदि ) २-स्वाद्य-स्वाद लेने योग्य (पान सोपारी) . ३-लेध-चाटने योग्य (मलाई, चटनी, रवी)
४-~-पेय-पीने योग्य ( पानी, दुध, शत. ४. चार अक्षर के मंत्र
अरह।
में ह्रीं नमः ४-चिन्ह ब्रह्मवारी
१-चोटी में गांव २----उर में जनेऊ ३-वटि में मूज का तागड
४ .रों में शुक्ल वस्त्र ४- उत्तम श्रोता
१-नेत्रगमान २-दर्पण-समान ३-तराजू की डंडी समान.
४-कसौटी समान ४-मुकदोष
१-स योगदोष २-प्रमाणदोष ३-अगरदोर ४-धमदोष
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५३ .
५-णमोकार
1-माअरहताण ( अरहता को नमस्कार हो) २-णमासिद्धाण ( सिद्धों को नमस्कार हो) ३-णमआयरीयाण' (आचार्यों को नमस्कार है। ) ४-मोउवज्शायाण । उपाध्यायों को नमस्कार हो) ५-णमोलाएसव्यसाहणं (लेक में सर्व साधुओं के
नमस्कार हो) ५-परमेष्ठी
-अरहंत २-सिद्ध
३-आचार्य
४-उपाध्याय .
५-सर्वसाधु ५-इन्द्रिय
-स्पर्श (खचा) २-रसना ( जीम) ६-प्राण (नाक) ४- चक्षुः (आंख ) ५-कण ( बान)
१-अहिंसा ( हिंसा न करना )
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२- सत्य ( झूठ न बोलना) ३-अचौर्य (पोरी न करना ) ४-ब्रह्मचर्य ( स्त्री मात्र वा त्याग )
५-परिमहत्याग ( धनादि का त्याग ) ५-अणुव्रत
१-अहिंसाणुव्रत ( संकल्पी हिंसा का त्याग ) २---सत्याणुव्रत ( पीडा कारक कठोर वचन न बोलना ) ३-अचौर्याणुवत ( जल मिट्टी को छोड़कर बिना आज्ञा घे
काइ वस्तु ग्रहण न करना) ४-ब्रह्मचर्याणुगत ( स्वनी में संताप रखना )
५-परिग्रह परिमाणाणुव्रत ( परिग्रह का परिमाण करना ) ५ - महाव्रत
१-अहिंसा ( हिंसा का सर्वथा त्याग २-सत्य ( झुठ का सर्वथा त्याग ) ३-अचौर्य ( चोरी का सवथा त्याग) ४-जमचर्य ( १८००० शील पालना )
ब- परिग्रहत्याग ( सर्व परिग्रहका त्याग करना) ५--- हा.--
१-हिंसा (प्रमादसे प्राणों का पात करना) २-झूठ ( असत् का कहना ) ३-चोरी ( विना दिये वस्तु ग्रहण करना ,
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४-कुशील (मथुन)
५-परीमह ( र्जा) ५. समिति
१-ईर्या (पर हाथ जमीन देस कर चलना २-भाषा ( हित-मित-प्रियवचन बोलग ) ५ ३-एपणा ( एक बार शुद्र निषि आहार लेना ) ४-आदाननिक्षेपण ( पीछी कमंडलु देखकर उटाना रसना ।
५-प्रतिष्ापना (जीव रहित स्थान में मलभूष करना ) ५- इन्द्रिय-जय
पांचों इन्द्रियों को वशमें करना ५.-इन्द्रियों के विषय
१-स्पर्श ( स्पर्श नन्द्रिय से जाना जाय) २-रस ( रसना-इदिय से मालुम पडे ) ३-गंध ( घ्राणेन्द्रिय से मालुम पडे ) ४-वर्ण (चक्षु न्दिय से जाना जाय )
५- शब्द ( कर्मेन्द्रिय से जाना जाय ) ५-स्थावर
१-पृथ्वीकाय ( पृथ्वी जिस का शरीर हो ) २-जलकाय (जल जिसका शरीर हो) ३-तेजकाय (अग्नि जिस का शरीर हो) ४-वायुकाय ( पवन जिस का शरीर हो)
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५६
५ वनस्पतिकाय ( वनस्पति जिसका शरीर हो )
-कल्याणक
१ -- गर्भ
२ -- जन्म
३ -लए
Gooty
४- ज्ञान
५---मोक्ष
५--ज्ञान
१ - प्रतिज्ञान ( इन्द्रिय व मन की सहायता से पदार्थ का जानना) २ - श्रुतज्ञान ( मतिज्ञान से जानी हुई बात में विशेष जानना ) ३ - अवधिज्ञान (इन्द्रियों की सहायता) विना रूपी पदार्थ को जानना) ४ --- मनः पय यज्ञान ( मन की बात जानना )
५ - केवलज्ञान ( लोकालोक की सर्व वस्तुओं की भूतभविष्यत वर्तमानपर्याय व गुण को एक साथ जानना )
५ -- मिथ्यात्व -
१ - - विपरीत ( उलटा श्रज्ञान )
२ -- एकान्त ( एक भत पकड़ना )
३-- विनय ( खरा-खोटा बराबर समझना )
- संशय ( संदेह रखना )
- अज्ञान ( पदार्थ का नहीं जानना )
----अजीव --
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५७
.
१-~-पुगात (रूप-रस-गंध-स्पर्श सहित) २-धर्म (जो जीद पुद्गल को चलने में मदद करे) ३-~-अधर्म (जीव पुद्गल को स्थिति करने में मदद करे) ४-आकाश ( रहने के लिये जगह ये) ५-~-पाल (परिणमन होना)
१-खा २-मीठा ३-कडवा ४-वरपरा ५-पायल्म
५ -रूप
२-पीला ३-नीला ४-लाल ५-फे
१-सुदर्शन २-जिय ३.-अचल
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४- सन्दर ५ -- विद्युन्माली
५. - अस्तिकाय --
५– पुल २ धर्म ३ अघ ४ आयश ५ जीव
५- पंचांगपूजा
cmte
१ - आहानन ( बुलाना )
२ -स्थापन (बैठाना )
३ – सन्निधिकरण ( हृदय में विराजमान करना }
आचर
४ - पूजन ( अष्ट द्रव्य में पूजना ) ५- सर्जन ( विदा करना )
५८
१ -दर्शन
२- ज्ञान
३-चारित्र
४- तप
वीर्य
५---जाति
१ -- एकेन्द्रिय २- द्वीन्द्रिय
#
३- त्रींद्रिय
४- चतुरिप्रिय
Yemm
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५-पंचेन्द्रिय ५. अनुत्तर
१-विजय २-वैजयंत 1-जयंत ४-अपराजित
५-सति सिद्धि ५-याल अमचारी
१-वासुपूज्य २-मल्लिनाथ ३-नेमिनाथ ४-पार्श्वनाथ
५-महावीर ५- दातार के आभूषण
१-आनंद पूर्वक देना २-आदर पूर्व क देना ३-प्रिय वचन से देना ४-निर्मल भाव से देना ५--जन्म सफल मानना
५- दातार के दूषण
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१--विलम्व करना २-विमुख होकर देता ३-दुर्वचन से देना ४-निरादर से देना
५-देकर पछताना 4- क्योतिषी
१-सूर्य २--चन्द्रना
५--तारागण ५.--निगोद स्थान
१-स्वध
३-आवास ४-पुलवी
५. शरीर ५-ब्धि
१-क्षयोपशम [ अनादि य सादि मियादृष्टी जीवको बहुत
काल से एकेन्द्री में भमण करते २ समय पाकर स्थावर
से निकल पंचेन्द्रिय की प्राप्ति ] २-विशुद्धि ( शुभ कर्मोदय से दानादि शुभ कार्यों के लिये
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उद्यत होना) 3-देशना-( सद्गुरु के उपदेश से तत्वज्ञान की प्राप्ति होना -प्रयोग ( काल पाकर प्रत धारण करके व उपवासादि तपश्चर्या करके भायु-कर्म सिवाय शेष कर्मों की स्थिति
को अंतः काडाकाडी सागर प्रमाण कर देना )
५-करण ( परिणाम ) 3-परावर्तन
१-द्रव्य ( संसार में भ्रमण करना ) २-क्षेत्र 3-काल ( "सर्वार्थ सिद्धि" में देखो ) ४-भव
५-भाव -५-पंचामृतादिभिषेक
२-दही
४-सुगंधित जल
५-इवरस ५-अमक्ष्य
१-सघात ( जिंन के खाने में त्रस जीवो का धात है)
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૬૨
२ -- बहुस्थावरघात ( जिन के खाने में स्थावर जीवों का
बात हो )
३ - प्रमादक ( प्रमाद बढाने वाले )
४ - अनिष्ट ( शरीर को इष्ट न हों )
: - अनुपसेव्य ( नेवन करने लायक न हो )
५ -- बंध-कारण
१ - मिध्यात्व ( विपरीतादि )
२ -- अविरति ( छहकाय के जीवों की हिंसा करना-मन को व ५ इन्द्रियों को वश न करना )
३----प्रमाद् ( शुद्ध आत्मानुभव से डिगना ) ४ - कषाय ( जो आत्मा का दुखड़े ) ५ - योग ( मन-वचन काय की प्रवृत्ति ) ५ - निग्रन्थ
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१ - पुलाक ( उत्तर गुणों की भावना रहित - मूल गुणों में भी
कभी दोष आवे )
२ -- वकुश ( मुल गुण परिपुर्ण होंय परंतु शरीर उपकरणादिकी शोभा ने की इच्छा हो ' )
३- कुशील ( मूल व उत्तर गुणांका पूर्णता - कदाचित् उत्तर गुणों में दोष आवे )
--- -निर्ग्रन्थ ( जिस मुनि के मोहनीय कर्म के उदय का अभाव होय )
५ - स्नातक केवली भगवान.
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१-वाचना ( वांचना ) २-पृच्छना ( पूछना) ३-अनुग्नेक्षा (पार २ विचार करना ) ४-~आम्नाय ( पाठ गोसना)
५-धर्मोपदेश ( धर्म का उपाय करना ) ५-पांडव
१युधिष्ठिर २-भोम 2-अर्जुन
५-सहदेव
२-पीपल ३-पाकर ४---उंचर ५-कहमर
२~स्थान ४५ लाख योजन के:
१-सिद्धक्षत्र
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६४
-सिद्धशिला :-प्रथम स्वर्ग का ऋजु विमान ४-प्रथम नरक का पहला पायंडा
-डाइद्वीप ५-नाम महावीर स्वामी
१-महावीर
२-सन्मति ३-अतिवीर ४-बीर
५ वर्द्धमान ५-निद्रा
१---निद्रा ( निद्रा आना ) २-निद्रा निद्रा ( पूरी नींद आन पर भी सोना ) ३-प्रचला ( बैठे बैठे उंधना ) ४-प्रचला प्रचला ( मुंह में से लार पडना ) ५-स्त्यानगृद्धि (नींद में से उठकर भारी काम करने पर भी
डटने पर उसकी खबर न हो ५-निर्वाणक्षेत्र
१- मेदशिखर २- चम्पापुर ३-पावापुर
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४-गिरनार
५. कैलागगिरि ५-परोक्ष प्रमाण
१-स्मृति ( पहली जानी हुइ वात को याद करना ) २--प्रत्यभिज्ञान ( स्मृति ओर प्रत्यक्ष के जोड रूप झान को) ३-तर्क ( व्याप्ति का ज्ञान )
--अनुमान ( साधन से साध्य का ज्ञान ) ५-आगम ( आम-वचन)
१-ऑपरामिक ( कर्मों के उपशम से ) २-क्षायिक ( कमों के क्षय से ) ३-झायोपशमिक ( उपशम व क्षय से ) ४--औदयिक ( कर्मो के उदय से ) ५--पारिणामिक ( जो कमों के उदय भय, उपशम से न
हो कर स्वाभिाविक हों) ५-शरीर
१-औदारिक ( मनुष्य तिर्यंच के स्थूल शरीर को ) २ वैक्रियक ( देव नारकियों के शरीर को ) ३-आहारक ( छठे गुण स्थान वर्ती मुनि के तत्वों में
कोई शंका होने पर केवली या श्रुत केवली के पास जाने के लिए मस्तक में से एक हाथका पुतला निकलता है।)
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४-तेजस ( कांति देने वाला)
५-कार्माण ( कर्म रूप ) ५-ज्ञानावरणी
१-मतिज्ञानवरण ( मति ज्ञान को रोकने वाला ) २-क्षुतज्ञानावरण (क्षुतज्ञान को रोकने वाला ) ३-अवधिज्ञानावरण ( अवधि ज्ञान को रोकने वाला) ४-मनःपर्यय ज्ञानावरण ( मन:पर्यय ज्ञान को रोकने वाला)
५-केवल ज्ञानावरण ( केवल ज्ञान को रोकने वाला) ५-अंतराय
१-दानांतराय ( दान में विघ्न आना ) २-लाभांतराय ( लाभ में , , ) ३-भोगांतराय ( भोग में , , ) ४---उपभोगांतराय (उपभोग में ,,,)
५--वीयर्या तराय ( ताकत में ,,) ५-चारित्र
१-सामायिक ( सब जीवों में समता भाव रखना) २-छेदोपस्थापना ( व्रत आदि में, भंग पड़ने पर प्रायश्चित
से फिर सावधान होना ) ३-परिहार विशुद्धि ( रागादि विकल्प त्याग कर अधिकता
के साथ आत्म शुध्धि करना) . ४-सूक्ष्मसांपराय ( दश वें गुण स्थान का चारित्र )
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५-यथाख्यात ११-१२-१३-१४ वेंगुणस्थान का चारित्र ) ५-संघात
१-औदारिक २-वैक्रियक 3-आहारक ४- तेजस ५ कार्माण
१-औदारिक
३-आहारक ४-तेजस ५-कार्माण
१-पादस्नान ( पैर धोना ) २-जानुस्नान ( जंधा पर्यंत ) ३-कटिस्नान ( कमर तक) ४-श्रीवास्नान ( गर्दन तक )
५-शिरस्नान ( शिर पर्यंत नहाना ) ५-ब्रह्मचारी
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१-उपनय (श्रावकाचार पालने वाले, विद्याभ्यास में नत्पर
गृहस्थ धर्म में निपुण ) २-अवलंब ( जब तक शादी न करें छुल्लक बंध में रहे,
अध्ययन पीछे लग्न करे ) ३-अदीक्षित ( विना दीक्षा ही व्रताचरण में लीन हो
शास्त्राभ्यास पीछे शादी करे ४-गूढ ( बाल्यावस्था से शास्त्र में प्रम हा. हट से शादी करे ५-नैष्ठिक ( जीवन पर्यंत स्त्री मात्र का लाग कर एक
वन रक्खे) ५-वर्ग
१-कवर्ग (क ख ग घ ङ) २-चवर्ग ( च छ ज झ ञ ) ३-~टवर्ग ( ट ठ ड ढ ण ) ४-तवर्ग ( त थ द ध न )
५-पवर्ग ( प फ ब भ म) ५--जिष्टी-बिडी]
१-धीरख २---उपसीरख ३-अवघाट ४-प्रकांडक ५-तरलमबंध
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-धारणा
१-पार्थिवी धारणा २-आग्नेयी धारणा ३--वायु धारणा ४-जल धारणा
५--तत्व रूपवती धारणा ( ज्ञानाणव' में देखो ) -अनर्थ दर
१-पापोपदेश ( पाप का उपदेश देना) 2-हिंसादान [ हिंसा के उपकरण देना ] ३-प्रमादचर्या [ विना प्रयोजन जलादि दोरना ] ४-दुःश्रुति | रागद्वेष करने वाली कथाएं सुनना ।
५--अपघ्यान ( खोटा विचार करना ) ५-अनृद्धि प्रार्यि
१-क्षेत्रार्या २-जात्यायां३-कार्या ४-चारित्रार्या ५-दर्शनार्या
'-अनुमान
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१-प्रतिज्ञा ( पक्ष और साध्य का कहना ) २-हेतु [ साधन का वचन ] ३-उदाहरण [ व्याप्ति पूर्वक दृष्टांत कहना ] ४---उपनय [ पक्ष और साधन में दृष्टांत की सद्रशता वताना) ५-निगमन [ नतीजा निकाल कर प्रतिज्ञा को दोहराना )
-इन्द्रिय-वश-जीवों के इष्टांत--
१- हाथी . २.-मछली ३--अमर ४-पत ग ५. हरिण
4.-सातावेदनीय बंध कारण
१- भूतवृत्यनुकंपा २-दान ३-सरागसंयमादियोग
५-शौच
५-दर्शन मोहमीय वध कारण
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ऋवली आणवाद [ दोष लगना ।
४---धर्म
१-चाकी
३-ओखली ४---जलगालन
५-शाइदेना ५-माश्चर्य--
-रत्नवृष्टि २-पुष्पवृष्टि ३-धादकवृष्टि ४-मंद सुगंध पवन
५-दुदुभि नजना -क्षेत्रपाल--
१-वीरभद्र २-मानभद्र
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७२
मांग !-मेरव
-अपराजित
५-राजा के बल
९--भाग्यवल २-देवचल
-मंदवल ४-शरीरबल ५--सामनवल
५-६प्रय
१-विनय नधन २-क्षेत्र , :-मार्ग ,
--सूत्र ,
:-सुखदुल .. २-अक्षर के मंत्र
९-नमः सिंधवः २-अति आ उसा 1-ओं अहं ननः
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-~वीरस्य नमः
५- समाधि मरण शुरि
१-जीने की इच्छा न करता २-मरने की इच्छा न करना ३-मित्रों में अनुराग न करना ४-पूर्व भोंगे हुए सुख का अनुभव न करना ५-निदान न करना
५-असिचार
हरेक नत के ५-५ और सम्यादर्शन तथा समाधि मरण के ५
अतिचार होते हैं सब ७० है
५-ष्टिषामांग के भेद
१-परिकर्म
३-प्रयमानुयोग ४-पूर्वगत ५. चूमिका
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५- मुमिका भोजन -
1.
'७५'
१- गोचरी ( गाय तुहय ) -भ्रमरी ( भ्रमरवत् )
३- गत पूरन ( ग
४ - दाहशमन
५- अंगण
भरना जैसे तैसे )
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