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________________ २ -- विरुद्ध ( साध्य से विरुद्ध पदार्थ के साथ जिसकी व्याप्ति हो) ३ - अनेकांतिक. ( जो हेतु पक्ष, सपक्ष, विपक्ष तीनों में व्यापे ) ४ - अकिंचित्कर (जो हेतु कुछ भी कार्य करने में समर्थ न हो) ४ - पर्यायार्थि कनय -- १ ---- ऋजुसूत्र ( भूत भविष्यत की अपेक्षा न करके वर्तमान पर्याय मात्र को ग्रहण करे ) २ --- शब्दनय ( लिंग, कारक, वचनादि के भेद से पदार्थ को भेदरूप ग्रहण करे ) ३ – समभिरूढ ( लिंगादिक का भेद न शब्द के भेद से पदार्थ को भेदरूप ग्रहण करे ) ४ एवंभूत ( जिस शब्द का जिस क्रियारूप क्रियारूप परिणमे पदार्थ को ग्रहण करे ) ५-अभाव · होने पर भी पर्याय अर्थ है उसी १ -- प्रागभाव ( वर्तमान पर्याय का पूर्व पर्याय में अभाव ) २ - प्रध्वसाभाव ( आगामी पर्याय में वर्तमान का अभाव ) ३ - अन्योन्याभाव ( पुद्गल द्रव्य की एक वर्तमान पर्याय में दूसरे पुद्गल की वर्तमान पर्याय का अभाव ) ४- अत्यं ताभाव ( एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य का अभाव ) ४--चारित्र १--- स्वरुपाचरण ( शुद्धात्मानुभव से अविनाभावी चरित्र विशेष ) २ - देशचारित्र ( श्रावक के व्रत ) ३ - सकल चारित्र ( मुनियों के व्रत ).
SR No.010583
Book TitleJain Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddhasen Jain Gpyaliya
PublisherSiddhasen Jain Gpyaliya
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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