Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 69
________________ ४-तेजस ( कांति देने वाला) ५-कार्माण ( कर्म रूप ) ५-ज्ञानावरणी १-मतिज्ञानवरण ( मति ज्ञान को रोकने वाला ) २-क्षुतज्ञानावरण (क्षुतज्ञान को रोकने वाला ) ३-अवधिज्ञानावरण ( अवधि ज्ञान को रोकने वाला) ४-मनःपर्यय ज्ञानावरण ( मन:पर्यय ज्ञान को रोकने वाला) ५-केवल ज्ञानावरण ( केवल ज्ञान को रोकने वाला) ५-अंतराय १-दानांतराय ( दान में विघ्न आना ) २-लाभांतराय ( लाभ में , , ) ३-भोगांतराय ( भोग में , , ) ४---उपभोगांतराय (उपभोग में ,,,) ५--वीयर्या तराय ( ताकत में ,,) ५-चारित्र १-सामायिक ( सब जीवों में समता भाव रखना) २-छेदोपस्थापना ( व्रत आदि में, भंग पड़ने पर प्रायश्चित से फिर सावधान होना ) ३-परिहार विशुद्धि ( रागादि विकल्प त्याग कर अधिकता के साथ आत्म शुध्धि करना) . ४-सूक्ष्मसांपराय ( दश वें गुण स्थान का चारित्र )

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