Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 68
________________ ४-गिरनार ५. कैलागगिरि ५-परोक्ष प्रमाण १-स्मृति ( पहली जानी हुइ वात को याद करना ) २--प्रत्यभिज्ञान ( स्मृति ओर प्रत्यक्ष के जोड रूप झान को) ३-तर्क ( व्याप्ति का ज्ञान ) --अनुमान ( साधन से साध्य का ज्ञान ) ५-आगम ( आम-वचन) १-ऑपरामिक ( कर्मों के उपशम से ) २-क्षायिक ( कमों के क्षय से ) ३-झायोपशमिक ( उपशम व क्षय से ) ४--औदयिक ( कर्मो के उदय से ) ५--पारिणामिक ( जो कमों के उदय भय, उपशम से न हो कर स्वाभिाविक हों) ५-शरीर १-औदारिक ( मनुष्य तिर्यंच के स्थूल शरीर को ) २ वैक्रियक ( देव नारकियों के शरीर को ) ३-आहारक ( छठे गुण स्थान वर्ती मुनि के तत्वों में कोई शंका होने पर केवली या श्रुत केवली के पास जाने के लिए मस्तक में से एक हाथका पुतला निकलता है।)

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