Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 50
________________ ५-दोष १-अतिकम ( मन में विकार ) २-व्यतिकम ( व्रत-उल्लंघन ) ३-अनीचार ( विषयों में प्रवृति ) ४-अनाचार ( विषयों में आसक्ति) १-वर्तना ( जो दूसरे का बर्तावे) २-परिणाम (द्रव्य की ऐसी पर्याय जो एक धर्म की निवृत्ति रूप और दूसरे धर्म की जननरूप होय३-क्रिया (हलनचलनादि रूप) ४-परवापरत्व ( छोटा वडा होना) ४-शिक्षाप्रत- १-सामायिक (सर्व जीवों में समताभाव रखना ) २-प्रोषधोपवास (अष्टमी चतुर्दशी को प्रोषध पूर्वक उपवास करना) ३-भोगोपभोगपरिमाण (मोग-उपभोग का नियम करना) ४-अतिथि संविभाग ( सुपात्र को दान देकर पीछे स्वाना) . ४-पर्व-. २-अष्ठमी एक मासके २-चतुर्दशी

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