Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 52
________________ २~-पुद्गलविपाकी-(जिस का फल शरीर में हो) ३-भवविपाकी-(जिस के फल से जीव संसार में रुके) ४-क्षेत्रविपाकी-(जिस के फल से विग्रह गति में जीवका आकार पहला सा बना रहे) ४ -देवगति के कारण १-सरागसंयम २---संयमासंयम ३-अकामनिर्जरा ४-बाल तप १ -आनुपूर्वी १-नरकगत्यानपू. २--तिर्यपत्यानुवी ३-मनुष्यन्त्यानुपूर्वी ४-देवगत्यानुपूर्वी ४-नीच गोत्र कारण १-3निप्रशंसा २-पर निंदा ३-इसरो के सद् गुणों को ढकना ४-~-इसरों के दुगुणों को कहना 3-हेत्वाभास १-असिद्ध (जिज हेतु के अभाव का निश्च हो)

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