Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 63
________________ १--विलम्व करना २-विमुख होकर देता ३-दुर्वचन से देना ४-निरादर से देना ५-देकर पछताना 4- क्योतिषी १-सूर्य २--चन्द्रना ५--तारागण ५.--निगोद स्थान १-स्वध ३-आवास ४-पुलवी ५. शरीर ५-ब्धि १-क्षयोपशम [ अनादि य सादि मियादृष्टी जीवको बहुत काल से एकेन्द्री में भमण करते २ समय पाकर स्थावर से निकल पंचेन्द्रिय की प्राप्ति ] २-विशुद्धि ( शुभ कर्मोदय से दानादि शुभ कार्यों के लिये

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