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२ -- बहुस्थावरघात ( जिन के खाने में स्थावर जीवों का
बात हो )
३ - प्रमादक ( प्रमाद बढाने वाले )
४ - अनिष्ट ( शरीर को इष्ट न हों )
: - अनुपसेव्य ( नेवन करने लायक न हो )
५ -- बंध-कारण
१ - मिध्यात्व ( विपरीतादि )
२ -- अविरति ( छहकाय के जीवों की हिंसा करना-मन को व ५ इन्द्रियों को वश न करना )
३----प्रमाद् ( शुद्ध आत्मानुभव से डिगना ) ४ - कषाय ( जो आत्मा का दुखड़े ) ५ - योग ( मन-वचन काय की प्रवृत्ति ) ५ - निग्रन्थ
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१ - पुलाक ( उत्तर गुणों की भावना रहित - मूल गुणों में भी
कभी दोष आवे )
२ -- वकुश ( मुल गुण परिपुर्ण होंय परंतु शरीर उपकरणादिकी शोभा ने की इच्छा हो ' )
३- कुशील ( मूल व उत्तर गुणांका पूर्णता - कदाचित् उत्तर गुणों में दोष आवे )
--- -निर्ग्रन्थ ( जिस मुनि के मोहनीय कर्म के उदय का अभाव होय )
५ - स्नातक केवली भगवान.