Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 22
________________ २-विभाव अर्थपर्याय ( पर निमित्त से जो अर्थपर्याय हो) २-क्रिया-- १-~-बारा किया ( पांच पाप करना) २-आभ्यंतर किया (योग कपाय } २-कारण-- १.-समर्य कारण (प्रतिबंधक का अभाव होने पर सहकारी समस्त सामग्री का सद्भाव ) २-असमर्थ कारण ( भिन्न २ प्रत्येक सामग्रो) २--सहकारी सामग्री १-निमित्तकारण ( जो पदार्थ स्वयं कार्य रुप न परिणमे ) २-उपादान कारण (जो पदार्थ स्वर कार्य रुप परिणमे ) १-सुस्वर ( अच्छा ) २-दुस्वर ( बुरा) २-नाम कर्म 1-शुम नाम ( जिससे शरीर के अपयव सुंदर हो) २-अशुम नाम ( जिससे शरीर के अवयव सुंदर न हो) २-पात १--उपधात (अपना ही घात करने वाले मंग).

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