Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 36
________________ ३-छत्र ( भगवान के ऊपर रहते हैं) ३-वर्ग १-धर्म २-अर्थ -काम ३-लक्षणाभास। १.-अव्याप्ति ( लक्ष्य के एक देश में लक्षण का रहना ) २-अतिव्याप्ति ( लक्ष्य और अलक्ष्य में लक्षण का रहना ) ३-असभव ( लक्ष्य में लक्षण की असंभवता ) ३-हेतु १-केवलान्वयी ( जिस हेतु में सिर्फ अन्वय दृष्टांत हो ) २–केवल व्यतिरेकी ( केवल व्यतिरेकी दृष्टांत हो ) ३-अन्वय व्यतिरेकी ( जिसमें अन्वयी दृष्टांत और व्यतिरेकी दृष्टांत दोनों हों ) ३-प्रमाणाभास १-संशय ( विरुद्ध अनेक काटि स्पर्श करने वाला ज्ञान) २-विपर्यय (विपरीत एक काटी का निश्चय करने वाला ज्ञान) ३-अनध्यवसाय (यह कया है “ऐसा प्रतिभास" ) ३-द्रव्यार्षिक नय १-नैगम ( पदार्थ के संकल्प को ग्रहण करने वाला ज्ञान ) २-संग्रह ( अपनी जाति का विरोध नहि करके अनेक

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