Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 38
________________ -दुरान्दर भव्य ३~-भाव ५-अशुभ ( कपायादि ) २-शुभ ( धार्मिकभाव ) ३-शुध्ध ( आत्मिकभाव ) ३-चेतना १--कर्म चंतना २-कर्म फल चतना ३-जान चेतना ३-अक्षर के मंत्र ॐ नमः ह्रीं नमः ३-करण १-अधःकरण ( जिस करण में उपरितन समयवती नया अधस्तन समयवर्ती जीवों के परिणाम सद्रश नथा विसदश हों ) २-अपूर्वकरण ( जिसमें उत्तरोत्तर अपूर्व ही अपूर्व परिणाम होते जावें) ३-अनिवृति करण ( जिस में भिन्न समय वर्ती जीवां के परिणाम विसदश ही हों और एक समयवर्ती जीवां के सदश ही हों )

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