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२- मन:पर्यय ज्ञान
१ - जुमति ( मन वन मन की बात जानना )
२-- विपुलमति (मरल व वक्र रूप दूसरे के मन की नात जानन्ग ) - निर्माण
२-अयग्रह-
१ --- स्थान निर्माण अंगोपांगो का योग्य स्थान में निर्माण होना ) २--- प्रमाण निर्माण ( आंगे गंगा की योग्य प्रमाण लिये रचना होना )
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२- अधिकरण---
नायकी गरलता रूप दूसरे के
१ - अर्थात्रमह | व्यक्त पदार्थ का अवग्रह )
२ -- जनाबग्रह ( अव्यक्त पदार्थ का अवग्रह )
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- जीवाधिकरण.
२ --- अजीवाधिकरण.
२-- निवर्तना-
१ --- देहदुः प्रयुक्त निर्वर्तनाधिकरण ( शरीर से कुचेष्टा उत्पन्न करना )
२ -- उपकरण निर्वर्तनाधिकरण ( हिंसा के उपकरण बनाना ) २-- संयोग
१ - - उपकरण संयोजना ( शीत स्पर्श रूप पुस्तकादि को गर्म