Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 33
________________ ३-अवधिज्ञान १--देशावधि २-सर्वावधि ३-परमावधि ३-पारिणामिकभाव १-जीवन २-भव्यत्व ३-अभव्यत्व १-द्रव्य लक्षण'... . १-उत्पाद (उत्पन्न होना) । २व्यय ( नाश होना)'' धोन्य ( निश्चत रुप में रहना : .. : ३-मकार-. ~मद्य ( शराव ) २-मांस ( गोस्त) ३-मधु ( शहद ) ३-समरंभादि १-समारंभ ( किसी कार्य का मन में विचार करना) २-समारंभ ( कार्य के लिए सामग्री इक्ठी' करना ) ३-आरंभ ( कार्य शुरु करना ) .... .

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