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की साध्वी परम्परा के सम्बन्ध में तो सूचनाओं का प्रायः अभाव ही रहा। मात्र विगत कुछ वर्षों से प्रकाशित होने वाली चातुर्मास सूचि से ही संतोष करना पड़ा है।
फिर भी साध्वी श्री विजयश्री जी ने अनेक कठिनाइयों को पार करते हुए लगभग 10,000 श्रमणियों के अवदान के विषय में सूचनाएं एकत्रित की है। मात्र नामोल्लेख की दृष्टि सेतो यह संख्या उससे भी अधिक होगी। उनका यह कार्य अत्यन्त परिश्रमपूर्ण रहा है। निश्चय ही श्रमणी संघ के इतिहास की दृष्टि से उनका यह श्रम सार्थक हुआ है और भावी शोधकर्ताओं के लिए आधारभूत और प्रेरणास्पद बनेगा। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए मैं अपनी ओर से और समस्त जैन संघ की ओर से उन्हें बधाई देना चाहूँगा और यह अपेक्षा रखूगा कि वे भविष्य में इसी प्रकार से जैन भारती का भण्डार भरती रहें।
आपका कार्य इतना पूर्ण होता है कि मुझे संशोधन की कोई अपेक्षा ही नहीं लगती। आपने जो श्रम किया है वह बहुत ही स्तुत्य है। पी.एच.डी. के सम्बन्ध में ऐसा परिश्रम विरल ही होता है। जैनसंघ आपके इस उपकार को कभी नहीं भूलेगा।
डॉ. सागरमल जैन
संस्थापक निदेशक प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर (म.प्र.) कार्तिक पूर्णिमा, वि.सं. 2063
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