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किया है उनकी यह शोध यात्रा किन-किन कठिनाईयों के साथ गुजरी है इसका मैं प्रत्यक्ष दृष्टा रहा हूँ।
जहाँ जैन आचार्यों और श्रमणी संघ के इतिहास का प्रश्न है वहाँ हमें प्रबंधकोष, प्रभावकचरित्र आदि अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हो जाते हैं किन्तु जैन साध्वी संघ के इतिहास के कुछ सूत्र ही मात्र प्रकीर्ण रूप में मिलते हैं। साध्वी विजय श्री जी ने इन प्रकीर्ण संदर्भों को समेटने और सजाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनकी इस शोध यात्रा के मूलतः तीन स्रोत रहे हैं- प्रथम स्रोत आगम, आगमिक व्याख्याओं और चरित्रकाव्यों के रूप में रहा है। यह साहित्यिक आधार अति विस्तृत रहा है। हजारों पृष्ठों की इस सामग्री से श्रमणियों ओर उनके अवदानों को खोज लेना एक कठिन कार्य था। यद्यपि इस महत्वपूर्ण कार्य में उन्हें 'प्राकृत प्रोपर नेम्स' से काफी सहायता मिली, फिर भी "प्राकृत प्रोपर नेम्स' मात्र ईसा की सातवीं शताब्दी तक के आगम और आगमिक व्याख्याओं के सन्दर्भों को ही उल्लेखित करता है, शेष सूचनाओं का आधार तो परवर्ती काल में लिखे गए चरित्र काव्य एवं कथानक ग्रन्थ ही रहे हैं।
उनकी इस शोध यात्रा का दूसरा एवं सबसे प्रमाणिक आधार जैन अभिलेख है। इन अभिलेखों में से साध्वियों के संदर्भों को ढूंढ निकालना कठिन कार्य था क्योंकि आज तक भी सभी जैन अभिलेखों का न तो सर्वेक्षण हुआ है और न प्रकाशन है। जैन अभिलेख संग्रह आदि प्रकाशित ग्रन्थों से विभिन्न अभिलेखों का आलोडन कर इस कार्य को सम्पन्न किया है।
इनके शोध ग्रन्थ का तीसरा आधार ग्रन्थ- प्रशस्तियाँ थी। आज भी जैन ग्रन्थ भंडारों में लाखों ग्रन्थ जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े हैं, उनकी सभी प्रशस्तियों को संग्रहित किया जाना तो सम्भव नहीं था, फिर भी जो भण्डार देखने को उपलब्ध हो सके, उनकी प्रशस्तियों को समाहित किया गया है, जितने भी जैन अभिलेख संग्रह प्रकाशित हुए हैं और जैन ग्रंथ भंडारों की जो भी प्रकाशित सूचियाँ प्राप्त हो सकी उनका आलोडन विलोडन किया गया है।
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