Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 9
________________ name Amer-- - - - Poem - - अगर कोई दे इसपे टुक अपना ध्यान ॥ १ ॥ नहीं ठहरे अनमत कोई सामने । करे जब यह परमाण नय का बयान ॥ २ ॥ दिखाती है निक्षेप सत भंग को। स्यादवाद इसका निराला निशान ॥ ३॥ बनावे यह परमात्मा जीव को। जो निश्चय करे देवे शिव बेगुमान ॥ ४॥ परीक्षा से सिद्धी करे वस्तु की। बताती नहीं यूही लाना ईमान ॥५॥ धर्म अर्थ शिव काम चारों मिले। जो न्यामत कोई इसकाले ठीक जानः ॥ ६ ॥ - - AAPaindine ___ तर्ज ॥ तोरि वाली मी उमर तिरछे नैना ॥ | जिनबाणी की कही तूने नहीं मानी। नहीं मानी तूने अभिमानी । जिन० ॥टेक ॥ लख चौरासी योनि में भटका, दुख सहे तूने अभिमानी ॥ १ ॥ जिनवाणी को हृदय धरिये, जो तू है चेतन ज्ञानी ॥२॥ जनम जनम के पाप कटेंगे, न्यामत,सुन बच सुखदानी ॥३॥ - - - ___ तर्ज ॥ सोरठ अधिक स्वरूप रूप का दिया न जागा मोल ॥ सुनो जैन ऋषी मुनि राज धर्म उपदेश सुनाते हैं। 'भूले फिरते जीवों को मुक्ति की राह बताते हैं | टेक ॥ - -

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