Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 8
________________ Pawa na 3 तर्ज ॥ सोरठ अधिक स्वरूप रूप का दिया न जागा मोल ॥ हुआ जनम जनम में ख्यार कुमति तेरी बातों में आके टेका। हुआ जैन धरम से विमुख. स्वर्ग और शिवपद का दाता । सहे दुस्ख अनंती बार तेरे वश नऊ में जाके ॥ १ ॥ जिन बाणी नहीं सुनी कुगति का सह डर मिट जाता। खोया विषय भोग सागर में नरभव चिंतामणि पाके ॥ २ ॥ न्यामत प्रीत करी सुमता से छोड़ मेरा दामन । आक धतूरे नहीं खावे कोई अमृत फल खाके ॥३॥ दर्ज नाटक ॥ प्यारी काहे सर धुने कलपा ना जिया ॥ स्वामि तू है हितकारी सबका जगमें। तारे बिन कौन बतलावे साँचि जिन बाणि स्वामि० ॥ टेक ।। तूही है सबको सुखदाई, नगरि नगरि में तोरी प्रभुताई। आवो आवो आवो स्वामि, शिवमग को दर्शाओ स्वामि ।। तेरा ज्ञान, है पहान, तुझ समान, है नहीं आन, भगवान । उपकारि दुखहारि, सुखकारि जग तारि ॥ तू है हितकारी०॥१ - । of ॥ इन्दरसभा ॥ मरे लालदेव इस तरफ़ जल्द आ ॥ अरे प्यारे सुन तू जरा देके कान । कि जिनवाणि से जीव पाता है ज्ञान ॥.टेक ॥. | मिटाती हैं संशय यही जीव की। - -

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