Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 74
________________ - - ---- --- (७०) सुरासुरा आवें फूल बर्षा झन नन नन नन झूम । न्यामत प्यारी वादे वहारी चल रही सन नन सूम ।। आहा०॥ ५॥ - R moreanemamaramanumm amaAARYAARAARADu- ammarware MO m - -am mmmmmn तजं ॥ रघुवर कौशल्या के लाल मुनी को यज्ञ रचाने वाले ॥ धन धन महावीर जिनराज शिव मारग दिखलाने वाले ॥ शिव मारग दिखलानेवाले सबका भ्रम मिटानेवाले ॥धन टेक करके देश विदेश बिहार, कीना सत मारग परचार । फैला दिया धर्म एकबार, हिंसा दूर हटाने वाले ॥ धन० ॥१॥ यहां था पशू यज्ञका जोर, होती थी नित हिंसा घोर । तुमने दिया यज्ञ सब तोड़, मारत प्राण बचानेवाले धन० ॥२॥ वाम मारग को दूर हटाया, तुमने शील धर्म बतलाया । सवको शिव मारग दिखलाया, हो अज्ञान मिटानेवाले ॥धन०३।। जितलाकर युक्ती परचंड, कर दिये सब झूठे मत खंड। भागे छोड़ छोड़ पाखंड, झूठी बात बनानेवाले॥ धन० ॥ ४॥ भारत हो रहा तेरा तीन, न्यामत है पुरुषारथ हीन। है परवंश अति ही प्राधीन, तुम ही धीर बंधानेवाले ॥धन०॥५॥ ... ॥ इति पंचम बाटिका समाप्तम् ॥ - - - a - me - - - - - ॥ इति श्री जैनभजन शतक समाप्तम् ॥ - - - --- - - -

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