Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini
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(२९) मुनी चरणन मंझार । गिरे भील और नार ।। लेके भाल अघकार । महाबीर अवतार ॥ न्यायमत उपकार जमाना किया ।। कैसे०॥६॥
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तर्ज ॥ जल कैसे भरू नदिया गहरी ॥ दुख कासे कहें कलयुग भारी। कलयुग भारी कलयुग भारी ।। दुख० ॥ टेक ।। दया धरम हृदय में नाहीं। करे जीव घात हिंसा भारी ।। दुख० ॥१॥ शील गया है भारत में से। कर दिया नियोग कुपथ जारी ।। दुख० ॥२॥ झूठ बचन हा ! निश दिन बोलें ॥ करें कपट द्यूतं चोरी जारी ॥ दुख० ॥३॥ किस विधि से सुख होवे प्यारे। करो काम महा दुख अघकारी ॥ दुख० ॥४॥ हमदरदी किस विधि से होवे। लड़ें आपस में दे दे गारी॥ दुख० ॥ ५ ॥ भारत क्यों ना दुखिया होवे । तजा जैन धर्म सब सुखकारी ।। दुख०॥ ६॥ पक्षपात तज जिनमत देखो। नहीं राग द्वेष सब हितकारी ।। दुख० ॥७॥ तज आलस पुरुषारथ धागे।
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