Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 64
________________ P - Sena. madamardanamaAma tr. Asa A तीन लोक के तुम सरताज | न्यामत शरण गही प्रभू तेरी। काटो भव भव के फंद आज ।। सुनियो० ॥३॥ - man- R तर्ज ॥ अरी में आज वसंत मनायो। पिया कान्ह घर आयो । (होरी काफी) ऐसी कर्मों ने कीनी खिलारी। होरी खेलत खेलत हारी । ऐसी० ॥ टेक ।। लोभ गुलाल मलो मोरे मुख पे, मोह की दी पिचकारी। माया के रङ्गमें ऐसी भिगोई, भूल गई सुधि सारी। रूप अपने को विसारी ॥ ऐसी० ॥१॥ काम क्रोध के कुमकुमे मुख पर, भर भरमार पछारी। आशा तृष्णा की गेंद वनाके, समता कुचन पर मारी। हँसी सङ्ग की सब नारी ॥ ऐसी० ॥२॥ सुमता सखी का संग छुड़ाया, कुमता लार हमारी। नेम धर्म की अगिया मसोसी, w M Amerisam Ruamasamsummmmmmmm m a m es - - a ms naapammam - -- - - -

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