Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 70
________________ ( -६६ ) कल्पवासी घर घंटे वाजत आसन कंपाये । उठ बैठे सुर असुर इन्द्र सब पूजनको आए ॥ २ ॥ इन्दर सब पूजन को आये मन में हर्षाए । तांडव नृत्य किया सुरपति ने चरणन शिरनाए || ३ || सब सखियन मिल मंगल गावें कर कर उच्छाए 1 फिर धनपति ऐरावत रच सज गज चढ़ कर आये ॥ ४ ॥ न्यामत दर्शन करो प्रभू के शौरीपुर जाए | जनम जनम संकट कट जा मन बंच्छित फल पाए || ५ ९५ तर्ज़ || सोरठ अधिक स्वरूप रूपका दिया न जागा मोल || अजी न्हवन करो जिन राज चलो सब जल भर कर लावें॥ टेक ॥ हांसी हिसार के भाई मिलकर जल भरने जावें । हर्ष हर्ष मिल मंगल गावें सर चरणन नावें ॥ १ ॥ थै थै थै थै नाचत आवें मनमें हर्षावें । तांडव नृत्य करें प्रभू आगे वंच्छित फल पावें ॥ २ ॥ धीरे धीरे निरख पृथ्वी जल भरने जावें । अजी हाथों हाथ कलश सब लेकर निर्मल जल लावें ॥ ३ ॥ सोरण चमर दुरें प्रभुजी के आनंद यश गावें । न्हवन करें श्रीजिन गंधोदक मस्तक पर लावें ॥ ४ ॥ धन्य घड़ी धनभाग हमारे प्रभु सुमरण पावें । भव भवमें यह न्यामत पावें मंगल दर्शावें ॥ अजी० ॥ ५॥

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