Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 71
________________ - - - -1 - - ... तर्ज ॥ शाशी तेरे वागमें उतरे सिपाही ( शाशीपुनो) ॥ घड़ी धन आज यह पाई है मैंने । . .. : न्हवन जिनराज हाथों से कराऊं ॥.टेक ॥ पहन सुन्दरसे वस्तर अपने तनमें। ... .. कलश लेकर जतनसे नीर लाऊं ॥ घड़ी०॥१॥ . स्तन चोंकी बिछा पंचरस मिलाऊं। न्हवन क्षीरोदधीसे मैं कराऊं ॥ घड़ी० ॥२॥ . . हर्षकर पंच मंगल गीत गाऊं। नृत्य करके चमर फिर फिर दुराऊं ॥ घड़ी० ॥३॥ विधीसे करके यों अस्नान जिनका। बिनय करके सिंघासन पर बिठाऊं ॥ घड़ी०॥४॥ प्रभामंडल प्रभूके पीठ सोहै। .. छत्र जिनराज सिर ऊपर फिराऊं ॥ घड़ी० ॥५॥ न्यायमत इस तरह प्रक्षाल करके । प्रभू चरणों में शीस अपना झुकाऊं ॥ घड़ी० ॥ ६ ॥ - . - % 3D - - - तर्ज ॥ ('चाल नाटक ) अंम्मा मुझे गोटे की टोपी दिलादे ॥ प्यारे जिन चरणोंमें जीया लगाले । जीया लगाले मनको मनाले ॥ परदा हटाले हटालें। प्यारे॥ -

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