Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 41
________________ - - (३७) । तर्ज ॥ अच्छे मयां थामलो हमारी जरा वा जी ॥ (खम्माच) तीन ताल ॥ एजी प्रभु राखलो शरण अपनैय्यांजी ।। टेक ।। में अज्ञान ना जाना तुमको। आज भरम मिटगैय्यांजी ॥ एजी०॥ १ ॥ मोहे अरीं हम धोका दीना। दर दर मोहे भटकैय्यांजी ॥ एजी० ॥२॥ | तुमतिहूं जग नामी जग स्वामी। यह निश्चय करलैय्यांजी.॥ एजी० ॥३॥ न्यामतकी जो भूल हुई है। माफ करो पद गहिय्यां जी ॥ एजी० ॥ ४ ॥ । - तर्ज | राग जगला लावनी जंगला गारा ॥ क्यों परमादी हुबारे तुझको बीता || काल अनंता क्यों परमादी हुवारे। सब नर नारी सुनियो जी। कहुं नाटक सती द्रोपदि का सब नर नारी०॥ टेक ॥ नाटक सुनो द्रोपदि का जी महा सती सतधार । किम स्वयम्बर मंडप रचाजी किम अर्जुन भरतार ॥१॥ धर्म पुत्रने तरचायो दुर्योधन के तीर। राज पाट सब हार दिया दुरशासन पकड़ा चीर ॥ २ ॥ ओंकार दोपदिने सुमरा आए शासन बीर ।' महासती का चीर बढ़ाया बंधा गए सन धीर ॥३॥ . -

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