Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 58
________________ ( ५४ ) ૯૦ तर्ज़ || अमोलक जैन धरम प्यारे । भूत विषयों में मतहारे । फजूल खर्ची को तजो प्यारे । । बिगड़ गए लाखों धनवारे || फ़जूल० टेक ॥ व्याह किया मन तोड़कर, हो बैठे कंगाल | रंडी भड़वे कर दिये देज़र माला माल || अजब हो मूरख मतवारे || फ़जूल० ॥ १ ॥ नामवरी के वासते भूर फेंक बहु कीन । पीछेहाट दुकान की, हुई एक दो तीन ॥ पड़े ओंधे सब नकारे || फ़जूल० ॥ २ ॥ काज रचाया नामको करके जोड़ अनेक । काम बिगाड़ा आपना मानी कही न एक ॥ फिरें अब तो दर दर मारे || फ़जूल० ॥ ३ ॥ लड़का जब पैदा हुवा खूब लुटाया माल । चाहे जच्चा और सुत भूक मरें बेहाल || मगर हो नाम एक बारे || फ़जूल० ॥ ४ ॥ विद्या पढ़ने के लिये कहें कहां से आय । बद रसमों में बंदकर आंखें लाख लुटाय || बना दिये हैं मूरख सारे || फ़जूल० ॥ ५ ॥ मूरख बनं चोरी करें करें मांस मद पान | जूवा गणिका सङ्गमें करें धर्म की हान | पड़े दुख सागर मंझधारे || फ़जूल० ॥ ६ ॥

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