Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 60
________________ cpm HT - ॥ श्री जिनेन्द्रायनमः॥ - - RAN पंचम बाटिका - - - - । तर्ज ॥ करल मत करना मुझे तेगो तवर से देखना ॥ | आपमें जबतक कि कोई आपको पाता नहीं। मोक्षके मंदिर तलक हरगिज़ क़दम जाता नहीं ।। टेक ॥ बेदया कूरान या पूराण सब पढ़ लीजिये। आपको जाने बिना मुक्ती कभी पाता नहीं ॥१॥ भाव करुणा कीजिये यह ही धाम का मूल है। जो सतावे और को सुख वह कभी पाता नहीं ॥ २॥ . हरन खुशबू के लिये दौड़ा फिरे जंगल के बीच । अपनी नाभीमें बसे इसको देख पाता नहीं ॥३॥ ज्ञानपे न्यामत तेरे है मोह का परदा पड़ा। इस लिये निज आत्मा तुझको नजर आता नहीं ॥४॥ - तर्ज ॥ चंदा तू लेजा संदेसा हमारे ॥ (चतुर मुकुट लम्बो खड़ी चाल) (स्तान्तवक सेनापती का सीता को बना छोड़ना और सीता का संदेसा देना) सेनापती लेजा संदेस हमारो रे। टेक ॥ चलत चलत व्याकुल भई दूखत सकल शरीर । - - - - - - - - - -

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