Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 57
________________ - - - ७८ तर्ज ॥ मैंने रामको माला फेरीरे । फेरीरे फेरीरे फेरोरे। मैंने० ॥ भैरव) - तुझे नींद अनादी आई रे। आई रे आई रेआई रे॥ तुझे०॥ टेक । मतना बीज विषय तरु बोवे । फल चाखत दुख पाई रे॥ तुझे ॥ १॥ इन्द्री विषय करो मत प्यारे । नों में ले जाई रे॥ तुझे० ॥२॥ मात तात सब स्वारथ. साथी। लिपति पड़े हट जाई रे॥ तुझ०॥३॥ न्यामत श्रीजिनके गुण गाले । भवसागर तिरजाई रे ।। तुझे० ॥ ४ ॥ ७९ तर्ज ॥ हमारी प्रभु नैय्या उतार दीजो पार ॥ प्रभू जी धारी बाणी ने मोह लियो जी ॥ टेक ॥ यही जिन बाणी सदा मुखदानी । शिवपद की निशानी सो मोह लियो जी ॥ प्रभू०॥१॥ यह जनम संवारती, करम गत टारती। | संसार से निकारती सो मोह लियो जी ॥ प्रभू० ॥२॥ जिन बाणी उरधारी, निज जनम सुधारी। न्यायमत बलिहारी सो मोह लियो जी।। प्रभू०॥ ३ .|| .. RAJA - - PR - -

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