Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 55
________________ - - - - - - - मिटे अज्ञान का तमहोवे धरम उजियाला । ||जैन बाणी का सदा होना मुबारिक होवे ॥३॥ होवें अघदूर यह मिथ्यात घटे छिन छिन में । सबको सम्यक्त सदाचार मुबारिक होवे ॥४॥ कष्ट इन्द्री को मिले और विषय को शूली। शील की सेज हमें नित्य मुबारिक होवे ॥५॥ नष्ट कर्मों का हो जो दुष्ट महा बैरी हैं। मोक्ष लेजाने को जिन शर्ण मुबारिक होवे ॥६॥ दंड कुमती को मिले जिसने भुलाया रस्ता । सुमता सुन्दर का हमें संग मुबारिक होवे ॥ ७ ॥ मोह को होवे बनोबास, फंसाया जगमें। हमको जिन भक्ति व संतोष मुबारिक होवे ॥ ८॥ क्रोध और मानसे हमको नहीं कुछभी मतलब । क्षमा और शिरका झुकाना ही मुबारिक होवे ॥ ९॥ एक जिनमतही से मिलता है मुक्ति का रस्ता । न्यायमत तुझको यह जिन धर्म मुबारिक होवे ।। १० ।। - - - - तर्ज:॥ मेरा रतीन लगता जी अब घर माजाना ॥ गौत्तम स्वामिजी थारी बाणी तनक सुनाय ।। टेके ।। महाबीर मुख बाणी खिरियां। किस बिधिं झेली जाय ।। गौत्तम० ॥१॥ तज यज्ञ समोशरण में आए। - - - - - - -

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