Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 44
________________ mom - - ॥ श्री जिनेन्द्रायनमः॥ . । - VERSAHETAE3952 REIN 200 चतुर्थ बाटिका 20-RAUMARIA SELPADAM RRYm ट -23382 e तर्ज ॥ इल जे दर्द दिल तुमसे मसोहा हो नहीं सकता । यह कैसी आके कजरी आजकल भारत पे छाई है। घटा आलस्य कुमति हिंसाझूठ जुड़ जुड़के आई है ।। टेक ॥ मूर्खता शोक हठचिंता अंधेरा छागया यारो। धुवांधार हर तरफ लालच ताअस्सुव ने मिचाई है ॥ १॥ निरुद्यमता अविद्या बिजलियां कड़कड़ाके गिरती हैं। ध्वजा धीरज की हिम्मत की अबस इसने गिराई है ॥२॥ भूककी रोगकी दुखकी बेगसे नहर चलती है। सभी सुख सम्पदा दारिद की नदियोंने बहाई है।।३।। हसद के फूटके ओले तडातड़ रात दिन बरसैं । नहीं मालूम होता कौन दुश्मन कौन भाई है ॥ ४ ॥ प्लेग अरु कहत की झुरियां चलें दिल हिल गया सबका । क्षुधा पीड़ित प्रजा दादुर ग़ज़ब हा हा मिचाई है ॥ ५॥ दया दिल में करो यारो परस्पर दुख हरो सबका । .. | कहे न्यामत दया के भावसे होती सहाई है॥६॥. . - - - -

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