Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 42
________________ । (३८) बन बनमें भ्रमते फिरे बैराट गए नर नार । कीचकने दुर्भाव किया तब दिया भीमने मार ॥ ४ ॥ कोप किया नारदने क्षणमें लीना चित्र बनाय । खंड धात कोजा पहुंचा और दिया पद्मको जाय ॥५॥ तुरत सुनाया हुक्म देवको हरलावो इसबार । सेज समेत उठालाया वह सती द्रोपदी नार ॥६॥ शील बचाया द्रोपदिने और तज दिया अन्न जल हार। कृष्ण हरी पदमोत्तर जीता दीना शंकट टार ।। ७॥ राजपाट तज भई अजिंका लीना संजम धार ॥ त्रिया वेद को छेद द्रोपदी पहोंची स्वर्ग मंझार ॥ ८॥ आदि अंत सब कहूं हाल द्रोपदि का सुमति विचार।। न्यामत सुमरण कर जिन जीका नाटक उतरे पार ॥९॥ meme 3 • तर्ज || चंचोला पार को चाल में ॥ दोहा। दुख सागर संसार में, जानो सभी असार। किसके तात और भात हैं, और किसके सुत नार ।। ॥ बोला॥ किसके सुत और नार जगत में स्वास्थ का यह ज़माना है। मोह जाल तज देखो नहीं कोई अपना सभी बिगाना है॥१॥ ज्यू सूके तरुवर पखी उड़ जावै पास नहीं आते । -

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