Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 45
________________ - - - तर्ज ॥ इलाजे दर्द दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता ॥ | जगत सब छानकर देखा पता सत का नहीं पाया। निजात होनेका जिनमतके सिवा रस्ता नहीं पाया । टेक । कोई न्हाने में शिव माने कोई गानेमें शिव माने । | कोई हिंसामें शिव माने अजब है जाल फैलाया ॥१॥ कोई मरने में शिव कहता कोई जरने में शिव कहता। दार चढ़ने में शिव कहता नहीं कुछ भेद है पाया ॥ २ ॥ कोई लोभी कोई क्रोधी किसी के संग में नारी । जटाधारी लटाधारी किसी ने कान फड़वाया ॥३॥ कोई कहता है मुक्ती से भी उलटे लौट आते हैं। अजब है आपकी मुक्ती मुक्त हो फिर यहीं आया ॥ ४॥ कोई ऐसा मान बैठा है मुक्ति ईश्वर के कबजे में। सिफारिश बिन नहीं मिलती यही है हकने फरमाया ॥ ५॥ कोई कहता है कुछ यारो-कोई कहता है कुछ यारो। जो सच पूछो हैं दीवाने असल रस्ता नहीं पाया ॥ ६॥ अगर मुक्ती की ख्वाहिश है जैनमत की शरण लीजे। पढ़ो तत्वार्थ शासन जिसमें शिव मारग है बतलाया ॥७॥ नहीं यहां पे जरूरत है किसी रिशवत सिफारिश की। चलाजो जैन शासनपे उसीने मोक्षको पाया ॥ ८॥ कर्म बंध तोड़के न्यामत बनो आजाद कर्मों से। ' नहीं कोई रोकने वाला ऋषभ जिन ऐसा फरमाया ॥९॥ -

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