Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 37
________________ - - लख मुख पर तिरियन का ॥ अरे० ॥१॥ सब सम्पति पांडवों ने खोई। खेल खेल जूवनका ।। अरे० ॥ २॥ न्यामत सात विषय को तजकर । गाले गुण भगवनका ॥ अरे० ॥३॥ तर्ज ॥ (इन्दर समा ) घरसे यहां कौन खुदा के लिये लाया मुझको ॥ : हाय इन भोगों ने क्या रंग दिखाया सुझको। बेखबर जगत के धन्दों में फसाया मुझको । टेक॥ . मैं तो चेतन हूं निराकार सभी से न्यारा । दुष्ट भोगों ही ने कमा से बंधाया मुझको ॥१॥ नींद गफलत से मेरी आँख कभी भी न खुली। भोग इन्द्री और विषयों ने भुलाया मुझको ।।२।। ज्ञान धन मेरा हरों रूप दिखाकर अपना । । जून चौरासी में भटका के रुलाया मुझको॥३॥ अब न सेऊंगा कभी भूल के इन विषयों को। न्यायमत जैन धरम अब तो है पाया मुझको॥ ४॥ . - % 3D तर्ज ॥ मामुर शोखो से शरात से भरी है .. चेतन जरा दे कान सुन इक बात हमारी। हम बैरी अनादी नहीं टोरेसे टेरेंगे॥१॥ देवों को फंसा लेते हैं मोह जाल डालकर । - -

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