Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ - - (१९) - - woman तर्ज ॥ जल कैसे भरू नदिया गहरी ॥ | अब कैसे करूं निद्रा गहरी। निद्रा गहरी निद्री गहरी ॥ अब० ॥टेक॥ | नाद करूं सुनने नहीं पाये। हाथ गहूं परमत* बैरी ॥१॥ चाल कुमति समझी नहीं जावे। सुध बुध आज गई मेरी ॥२॥ न्यामत सीख सुनो सुमता की। सब सुधरे बिगड़ी तेरी ॥३॥ - - राग खमाच (ठुमरी) तर्ज ॥ माज आली श्रीमती जननी सुत जायोरी ॥ आज प्रभू समकित मेरे मन आई जी ॥ टेक ॥ भूला फिरा भव बन बन मैं तो। कबहुना सुध बुध आई जी ॥ आज०॥१॥ आज सुनी जिनवाणी मैंने।। मिटगई बिकल पताई जी। आज० ॥२॥ तुमहो महा उपकारी सबके। नींद अनादि हटाई जी॥ आज०॥३॥ जिनवाणी बसियो उर मेरे। ज्ञान कला उर छाई जी। आज०॥४॥ - - *'प्रमाद - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77