Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini
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(२४)
दोहा। छिन भंगुर संसार लख, छोड़ दिया परिवार। लोकांतिक सुर आयके, करी अस्तुती सार।।
झड़ी।
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राज पाट तज दीनो । बीतराग वित कीनो ।। बन मांही दीक्षा जैन की धरण गयेरी ॥ आली० ॥३॥
दोहा।.. . घात घातिया करम को, लीनो केवल ज्ञान । सकल ज्ञेय ज्ञायक भए, सब दी भगवान ॥
झड़ी। सात तत्व षट द्रव्य । इनकी पर्यायं सर्व । प्रभु दिव्य ध्वनि मांही बरणन कियेरी ॥ आली० ॥ ४ ॥
दोहा।
शेटर नो कर्म थिति जब घटी, भये आप शिवरूप । निरआकुल आनंदमय, अतुल शक्ति चिदरूप ।।
झड़ी . परमातम कहाये । मुनि जन गुण गाए । लख न्यामत जिनेन्द्र के चरण गहेरी ॥ आली० ॥ ५॥
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३८.
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. तन ॥ यह कैसेवा
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तर्ज ॥ यह कैसे वाल हैं विखरे यह क्या सूरत वनों गम की ॥' सुनो सिद्धार्थ के नंदन संती त्रिशला उरानंदन ।

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