Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 13
________________ - - - - तर्क वितर्क तजो इसकी और भेद बिज्ञानन की॥१॥ यह परमातम यह मम आतम, बात बिभावन की ॥ हरो हरो बुधनय प्रमाण की और निक्षेपन की ॥२॥ ज्ञान चरण की बिकलप छोड़ो छोड़ो दर्शन की। न्यामत पुद्गल हो पुद्गल चेतन शक्ती चेतन की ॥३॥ १३ - - -- तर्ज ॥ मेरोआह का तुम असर देख लेना । वह आयेंगे थाँव जिगर देख लेना॥ 3D - करम का तुम अपने यह फल देख लेना। करोगे जो कुछ आज कल देख लेना ।। टेक ।। विषर्षों में लगे रहते हो रात दिन पर । मिलेगा न सुख एक पल देख लेना ॥१॥ सताओगे जगमें जो तुम जी किसी का। पड़ेगी न तुमको भी कल देख लेना ॥ २ ॥ फिरोगे चहूं गति में हिंसा से न्यामत । है कहना हमारा अटल देख लेना ॥३॥ तर्ज ॥ ज़माना तेरा मुवतला होरहा है । तुझे भी खबर है कि क्या होरहा है। अनारी जिया तुझको यह भी खबर है। । किधर तुझको जाना कहाँ तेरा घर है ।। टेक ।। | मुसाफिर है दो चार दिनका यहाँ पे। - - -

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