Book Title: Jain Bhajan Shataka
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ A P PRONPARBHANGA 3 ॥ श्रीजिनेन्द्रायनमः॥ % द्वितीय बाटिका - power Remi - Ru d osamaAAM है तई। यह कैसे बाल बिखर यह क्यों सूरत बनी गमको । तुम्हारा चंद मुख निरखे सुपद रुचि मुझको आई है। ज्ञान चमका परापर की मुझे पहिचान आई है ।। टंक ।। . कला बढ़ती है दिन दिन कामकी रजनी बिलाई है। अमृत आनंद शासन ने शोक तृष्णा बुझाई है ॥ १ ॥ जो इष्टानिष्ट में मेरी कल्पना थी नशाई है। मैने निज साध्य को साधा उपाधी सब मिटाई है ॥ २॥ धन्य दिन आज का न्यामत छबी जिन देख पाई है। सुधर गई आज सब विगड़ी अचल ऋधि हाथ आई है।।३।। २२ ___ तर्ज ॥ नाटक ( इसपर थ्येटर में नाच होता है ) ॥ अरि आवो शुभघड़ियां, मनावो शुभघड़ियां, मनावो शुभ घड़ियां, मनावोरी ॥ टेक ।। घर घर में आनंद छाय रह्यो हैं। श्री जी ये वारो, बनाय गुल कलियां, -

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77