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॥ श्रीजिनेन्द्रायनमः॥
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द्वितीय बाटिका
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तई। यह कैसे बाल बिखर यह क्यों सूरत बनी गमको । तुम्हारा चंद मुख निरखे सुपद रुचि मुझको आई है। ज्ञान चमका परापर की मुझे पहिचान आई है ।। टंक ।। . कला बढ़ती है दिन दिन कामकी रजनी बिलाई है। अमृत आनंद शासन ने शोक तृष्णा बुझाई है ॥ १ ॥ जो इष्टानिष्ट में मेरी कल्पना थी नशाई है। मैने निज साध्य को साधा उपाधी सब मिटाई है ॥ २॥ धन्य दिन आज का न्यामत छबी जिन देख पाई है। सुधर गई आज सब विगड़ी अचल ऋधि हाथ आई है।।३।।
२२ ___ तर्ज ॥ नाटक ( इसपर थ्येटर में नाच होता है ) ॥ अरि आवो शुभघड़ियां, मनावो शुभघड़ियां, मनावो शुभ
घड़ियां, मनावोरी ॥ टेक ।। घर घर में आनंद छाय रह्यो हैं। श्री जी ये वारो, बनाय गुल कलियां,
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