Book Title: Jain Bal Shiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 9
________________ ( 4 ) जिनको एक भी कर्म का बन्धन नहीं है, तो सब प्रकार से सदा के लिए शुद्ध हो गये हैं। मुक्त जीवों का न शरीर होता है, और न कोई रूप-रंग होता है। भूख-प्यास, रोग-शोक आदि कोई भी, किसी भी तरह का दुःख वहाँ कभी नहीं होता। मोक्ष में आत्मा केवल शुद्ध आत्मा ही रहता है। मुक्त जीव कौन होते हैं ?-इस कथन का उत्तर भी तुम्हें बता दूँ। भगवान् ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थंकर मुक्त जीव हैं। अब वे जन्म-मरण के बन्धन से सदा के लिए छूट गये हैं। पुराने काल में रामचन्द्रजी, हनुमानजी, गौतम स्वामी तथा जम्बू स्वामी आदि भी मोक्ष पाकर मुक्त जीव हो गये हैं। 2.संसारी जीव अब रहे दूसरी तरह के संसारी जीव। संसारी जीव वे हैं जो कर्म के बन्धनों से बँधे हुए हैं, जो संसार में जन्म-मरण करते हैं। संसारी जीव मुक्त जीवों से बिल्कुल उल्टी तरह के हैं। मुक्त जीव शुद्ध हैं, तो संसारी जीव अशुद्ध। मुक्त जीव शरीर से और रोग-शोक आदि दुःखों से बिल्कुल रहित हैं, तो संसारी जीव शरीर वाले हैं और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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