Book Title: Jain Bal Shiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 61
________________ ( 56 ) लक्ष्मी से पूछा, तो उसने कहा- 'यह घर मैंने तुम्हें दे दिया। अब यह घर तुम्हारा है, जैसा चाहो बना लो।' आखिर पुराना घर गिराया गया और उसकी नींव खोदी जाने लगी। उस नींव में से सोने की मुद्राओं से भरा एक गढ़ा अड़ा निकला। अब प्रश्न यह उठा, कि इस धन का मालिक कौन हो ? ऊदा ने सोचा- 'घर लक्ष्मी का था, उसे क्या मालूम न होगा कि नींव में धन गढ़ा है ? जान पड़ता है, उसे कुछ मालूम नहीं है। अगर मालूम होता, तो वह जरूर इसे निकलवा लेती। परन्तु कुछ भी हो, उसे मालूम हो या न हो, इस घर की मालिक तो वही है। इसलिए मुझे तो यह धन उसी को दे देना चाहिए।' ___ यह सोचकर नींव में से मिले हुऐ सारे धन का लेकर ऊदा लक्ष्मी के पास पहुँचा। लक्ष्मी, लक्ष्मी ही थी। उसने लेने से साफ इन्कार कर दिया और कहा 'भाई क्या पागल हो गए हो ? अब घर मेरा कहाँ है, वह तो मैं तुम्हें दे चुकी थी। अब धन से मुझे क्या वास्ता ? क्या मुझे पाप में डुबोना चाहते हो ?' बहुत आग्रह किया गया, परन्तु लक्ष्मी टस से मस न हुई। उसने उस धन को छुआ तक नहीं, सब-का-सब ऊदा को ही लेना पड़ा। अब क्या था, उस धन के बल पर गरीब ऊदा, ऊदा न रहकर सेठ उदयन बन गया। आगे चलकर यही गुजरात के महामन्त्री उदयन बने। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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