Book Title: Jain Bal Shiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 39
________________ ( 34 ) एक दिन वे इसी प्रकार का खेल, खेल रहे थे। तभी चाणक्य नाम के ब्राह्मण परिव्राजक उधर आ निकले। उन्होंने देखा कि बच्चों का दरबार लगा हुआ है। उनमें एक तेजस्वी बालक राजा बना हुआ है। सामने एक बालक अपराधी के रूप में खड़ा है। बालक राजा उसका न्याय कर रहा है। बालक के न्याय का ढंग देखकर, चाणक्य को बड़ा कुतूहल हुआ । वह आगे बढ़ा और बोला, 'महाराज की जय हो। मैं ब्राह्मण हूँ। मुझे कुछ भिक्षा मिल जाये।' बालक चन्द्रगुप्त एक राजा की तरह बड़े रोब से बोला- 'जाओ, तुम्हें सौ गायें भिक्षा में दे दीं। वे सामने गायें चर रही हैं, तुम उन्हें ले लो।' चाणक्य बोले— 'लेकिन महाराज ! वे गायें तो दूसरे की हैं ? वह कैसे लेने देगा ?' चन्द्रगुप्त का मुख रोष से सुर्ख हो गया। बोला- 'कौन कहता है, वे गायें दूसरे की हैं, वे उनकी हैं, जो उन्हें लेने की ताकत रखता हो। तुममे ताकत हो, तो सब कुछ तुम्हारा अपना हो सकता है । ' बस, दरबार समाप्त हो गया। बालक अपने-अपने घर जाने लगे। चाणक्य को यह विश्वास हो गया, कि यह बालक होनहार है। उन्होंने बालक से उसका नाम पूछा और उसके पिता से जाकर मिले। चाणक्य बोले- 'आपका बालक बड़ा होनहार है। मैं चाहता हूँ, आप इस बालक को मुझे दे दें। मैं इसे विद्या पढ़ाऊँगा । ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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