________________
( 48 )
9.मोक्ष तत्त्व-सब कर्मों को नष्ट करके, जब आत्मा जन्म-मरण के चक्र से सदा के लिए छूट जाता है, तब मोक्ष होता है। मोक्ष दशा में न शरीर रहता है, और न शरीर के द्वारा भोगे जाने वाले संसारी सुख-दुःख के भोग ही रहते हैं। उसी समय आत्मा परमात्मा बन जाता है।
निर्जरा में कुछ कर्मों का नाश होता है, जबकि मोक्ष में कर्मों का पूर्णतया नाश होता है, यही इन दोनों में भेद है।
मोक्ष पाने के लिए तीन रन की उपासना बहुत आवश्यक है। सम्यक दर्शन-वीतराग भगवान की वाणी पर सच्चा विश्वास, सम्यक-ज्ञानजीव, अजीव आदि तत्वों का सच्चा ज्ञान, सम्यक् चरित्र- अहिंसा, सत्य आदि का सच्चा आचरण जैन-धर्म में ये तीन रत्न माने गए हैं। जब उक्त तीनों रत्नों की साधना पूर्ण दशा पर पहुँचती है, तब आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है पहले नहीं।
अभ्यास 1. पाप और पुण्य का स्वरूप बताओ। 2. आस्रव और संवर किसे कहते हैं ? 3. निर्जरा और मोक्ष में क्या अन्तर है ? 4. तीन रत्न कौन-से हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org