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आचार्य चाणक्य एक रासायनिक विद्या जानते थे। उससे सोना बना सकते थे। महापद्म नन्द बहुत शक्तिशाली राजा था। उसे हराने के लिए बहुत सेना की आवश्यकता थी। बस चाणक्य सोना बनाने लगे और उससे सेना भर्ती करने लगे।
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य
जब सेना भर्ती हो गई, तो चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के साथ नन्द वंश की राजधानी पाटलिपुत्र पर सीधा आक्रमण किया। उन दिनों राजा लोग अपनी राजधानी में काफ़ी फौज रखते थे। अतः चन्द्रगुप्त की छोटी-सी सेना युद्ध में नन्दराज की विशाल सेना के सामने टिक न सकी और भाग खड़ी हुई ।
जब सेना ही भाग गई, तब अकेले चाणक्य और चन्द्रगुप्त क्या कर सकते थे ? वे भी अवसर देखकर अपने प्राणों की रक्षा के लिए भागे । उनको पकड़ने के लिए राजा नन्द के सिपाही भी उनके पीछे-पीछे दौड़े।
चाणक्य और चन्द्रगुप्त भागे जा रहे थे। तभी एक गाँव में एक गृहस्थ के घर के द्वार से चाणक्य ने सुना -- एक बालक जोर-जोर से रो
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