Book Title: Jain Bal Shiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 42
________________ - ( 37 ) रहा था और उसकी बूढ़ी दादी उसे डाँट रही थी। तू तो चाणक्य की तरह मूर्ख है। मूर्खता करेगा, तो कष्ट पायेगा ही। चाणक्य को अपना नाम सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह घर के भीतर गया और बोला- 'माता ! मैं भीतर आने के लिये क्षमा चाहता हूँ। अभी आप चाणक्य को मूर्ख बता रही थी सो क्यों ?' - वृद्धा बोली- "बेटा ! चाणक्य ने मूर्खता की कि उसने सीमान्त के देशों को तो जीता नहीं, सीधा राजधानी पर आक्रमण कर दिया। ऐसे ही इस मूर्ख बालक ने भी गलती की। मैंने इसको खिचड़ी परोसी थी। खिचड़ी गर्म थी। इसे खिचड़ी ठण्डी करके किनारे से खानी चाहिए थी किनारा जल्दी ठण्डा होता है। लेकिन, इसने बीच में हाथ डाल दिया। इससे इसका हाथ जल गया।" चाणक्य वहाँ से बाहर आ गये। उन्हें अपनी गलती का अनुभव हो गया। उन्होंने फिर सेना इकट्ठी की और तब चन्द्रगुप्त ने सीमान्त प्रदेशों को जीतना शुरू किया। इसी तरह जीतते-जीतते उन्होंने बहुत दूर तक का प्रदेश जीत लिया और एक दिन नन्द राजा को हराकर पाटलिपुत्र पर अपना झण्डा लहरा दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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