Book Title: Jain Bal Shiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 20
________________ 6 भगवान् पार्श्वनाथ भगवान् पार्श्वनाथ का समय हठयोगी तापसों का समय था । उस समय भारत की जनता जड़ क्रिया-काण्डों में उलझ कर सत्य-भ्रष्ट हो गई थी। कुछ साधक अपने चारों ओर अग्नि जलाकर तप करते थे । कुछ वृक्ष की शाखा से पैर बाँधकर औंधे मुँह लटके रहते थे। कुछ सूखे पत्ते चबाकर ही जिन्दगी बिता रहे थे। इसी युग में, काशी के राजा अश्वसेन के यहाँ पोष बदी दशमी के दिन भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म हुआ। भगवान् की माता का नाम वामा देवी था। एक बार काशी में गंगा के तट पर युग का प्रसिद्ध तपस्वी कमठ आया । वह रात-दिन अपने चारों ओर अग्नि जलाकर तप किया करता था। हजारों नर-नारी कमठ के दर्शनों को उमड़ पड़ते थे। अपनी पूजा प्रतिष्ठा देखकर साधु को मिथ्या अहंकार हो गया था। महारानी वामा देवी भी उसके दर्शन को गईं। राजकुमार पार्श्व भी . साथ थे। राजकुमार को जनता की धर्म - मूढ़ता पर बहुत दुःख हुआ । पार्श्व अपने ज्ञान नेत्र से देखा कि धूनी के एक लक्कड़ में, जो अन्दर से खोखला है, नाग-नागिन का एक जोड़ा जल रहा है। पार्श्व कुमार ने | कहा- तपस्वी! तुम तो धर्म की जगह अधर्म कर रहे हो। देखो, धूनी सि साँप का जोड़ा जल रहा है। Jain Education International 15 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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